पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/११९

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आल्दखण्ड। ११४ लाखापातुरि देशराज की सो बुलवई बीर मलखान १२६ संगै देवलि के पलकी त्यहि तहँ ते कूच दीन करवाय॥ जोन सिपाही रहैं मुहवे के आल्हातुरतलीनबुलवाय१२७ साल दुसाला काहू दीन्यो काहू कड़ा दीन डरवाय॥ चौरा कलँगी दी. काहू काहू मोहर दीनछिदाय १२८ कूच कराये लोहागढ़ते बबुरीबनै पहूंचे आय॥ जितनी सामारहै माड़ो की ताको ठीकठाककरवाय १२६ जितनो करिया ले आवा ता ताते दशगुन अधिकबढ़ाय॥ आल्हा लेकै हुशियारी सो बोले मातै शीश नवाय १३० हुकुम जो पावें महतारी को मलखे साथ बनारस जाय ॥ चाचा दादा की किरिया करि पार पिण्ड गया में माय १३१ डर खुपड़ियाँ हम फलगू में तुमहूं कूच देव करवाय ॥ सुनिकै वातें ये आल्हा. की माता वारवार बलिजाय १३२ स्थावसिस्यावसि सबदलबोल्यो भे मन बड़ेखुशी मलखान ॥ पाँय लागि फिरि माता के तहते चले दूनहू ज्वान १३३ ईतो पहुंचे काशी में हाँ उन कूच दीन करवाय ॥ सत्रह दिनकी मैमागरिक सबदल अटा मोहोवेभाय१३१ वाजें डंका अहतन ने वका शङ्का को विसराय॥ कम्मर छोरे कोउ कोउ क्षत्री कोऊ रहे रामको ध्याय १३५ सय्यद देवा ऊदन मिलिके तीनों चले जहाँ परिमाल । चरणन गिरिक महराजा के औसक्कयोआपनोहाल१३६ चरणन गिरिक महरानी के 'भपनाहालगये सबगाय १३७ मल्दना महल पहूंचे जाय॥ बही खुशाली में महिना के वरणी कौन भांति सो जाय।