पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४२

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आल्हाका विवाह । १३७ गा नेपाली निज मंदिर को लश्कर खुशी बनाफरराय ८४ ऊदन बोले फिर मलखे ते दादा मोहबेके सरदार ॥ कूच करावो अब लश्कर को चलिकै ल. तासुके द्वार ८५ यह मन भाई मलखाने के तुरतै कूच दीन करवाय ॥ कोउ कोउ घोड़ा हंसचाल पर कोउकोउ मोरचालपरजायँ ८६ चित्रचालपर चतुरचालपर कोइकोइंचलैं तितुरकी चाल ।। मारु मारु के मौहरि बाजे वाले हाव हाव करनाल ८७ वाजें , डंका अहतंका के घूमत जावे लाल निशान ।। छाय अँधेरिया गै दशहू दिशि छिपिगे अंधकार में भान ८८ मारु मारु करि क्षत्री बोलें रणमें बड़े लड़ता ज्वान ।। घोड़ी कबुतरी के ऊपर माँ आगे चला बीर मलखान ८६ तीनकोस जब फाटक रहिगा तब पुरवासी उठे डेराय ।। यक हरिकारा दौरति आवै राजै खबरि सुनाई आय ६० सुनिकै बातें हरिकाराकी राजा मनै उठा अकुलाय ।। जोगा. भोगा तहँ बैठेथे बोले राजै शीश नवाय ६१ हुकुम जो पावें महराजा को डंका अबै देय बजवाय॥ जाय न पावें मोहबे वाले सबकी कटा लेय करवाय ६२ मुनिकै बातें ये लरिकन की राजै हुकुम दीन फर्माय । जोगा भोगा दोऊ चलिमे लश्कर तुरत पहूंचे आय ६३ वाजे डंका अहतंका के शङ्का करे कोऊ नहिं काल ।। घोड़ आपनेपर चढिबैठ्यो पूरन पटना को नरपाल ६४ जोगा भोगा घोड़े बैठे लश्कर कूच दीन करवाय॥ बाजे डंका अहतंका के पहुँचे समरभूमि में आय ६५ आगे घोड़ाहै जोगा का पाछे सकल शूर मरदार ॥