पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१४४

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आल्हाका विवाह । १३६ २३ जीवत वचिहै जो मुर्चा ते पाई खान पान सनमान १०८ जो. भगिजाई अब मुर्चा ते तेहिको हनों कठिन तलवार॥ जोगा भोगा की बाते सुनि जूझनलागिशूर सरदार १०९ कटि कटि कल्ला गिरें बछेड़ा मरि मरि होनलागखरिहान॥ धरि धरि धमकै रण खेतन में क्षत्री बड़े लडैता ज्वान ११० मूड़न केरे मुड़चौरा मे औ रुण्डन के लगे पहार ॥ मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १११ सर्वया ॥ कौन शुमार करै ललिते अतिमार भई सो कहाँ लगगाई। खून कि धार बहे नदि नार किनार परें गज ऊंट दिखाई ।। नाच पिशाच करें तहँ साँच लिये करखप्पर योगिनि आई ।। गावत भूत बजावत ताल तहाँ करतालनकी धुनिछाई ११२ ऊदन बोले मलखाने ते मलखाने ते दादा मोहबे के सरदार ।। कठिन मवासी है नैनागद ह्याँपर बहुत रहौ हुशियार ११३ मन्नागूजर मोहबे वाले जावो एक तरफ यहिबार । चाचा मालिक सब तुमहीं हो राजा बनरस के सरदार ११४ तुम चलिजावो एक तरफको मारो इंदि ढूंढ़ि कै ज्वान ।। हाथिन करें तुम हौदापर दादा हनो बीर मलखान ११५ इतना कहिक बघऊदन ने हाँदा उपर नचावा घोड़। काहू मारा तलवारी सों काहू हना तडाका गोड़ ११६ बाइस हौदा खाली बैगे अकसर ऊदन के मैदान ।। घोड़ी कबुतरी के ऊपरते बहुतन हना बीरमलखान ११७ जैसी जावे बनरसवाला आला समर धनी तलवार॥