पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४१२

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अथ पाल्हखण्ड॥ सिरसाकासमरवर्णन॥ सर्वया ॥ घ्यावत तव पद कंज शिवा मनभावत दे वरदान भवानी। तवपति भंगनशे में परे अरु गावत गीत हरी हरि वानी।। नाहिं सुनय विनती ललिते यह साँचहु साँचहु साँच वखानी। दे मृगनयनी कि दे मृगछाल यह हम चाहत है, शिवरानी ? सुमिरन ॥ सुमिरि भवानी शिवरानी को सिरसा समर करों विस्तार in नेया डगमग भवसागर में माता- तुम्ही निबाहन हार १ आदि भवानी महरानी तुम तुम बल सृष्टि रचैं करतार । परम पियारी त्रिपुरारी की धारी देह जगत उपकार २ पुत्र षडानन गजआनन है हमरे माननीय शिरताज ।। प्रथमें सुमिर गजानन को हो सकल तासु के काज ३ ३ सुमिरि षडानन का दुनियामा लाखन सिद्धभये द्विजराज ॥ मलखे पृथ्वी के संगर को वर्णन करों सुमिरि रघुराज ४