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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५४

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कीरतिसागरकामैदान। ४५३

धम् धम् धम् धम् बजैं नगारा मारा मारा की ललकार ११२
सन् सन् सन् सन् गोली छूटैं तीरन मन्न मन्न गा छाय॥
फर फर फर फर घोड़ा रपटैं लपटैं देह देह में धाय ११३
को गति बरणै रजपूतन कै उठि उठि रुण्ड करैं तलवार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार ११४
चहला ह्वैगा चार कोसलों नदिया बही रक्तकी धार॥
लड़ै पिथौरा तहँ सँभराभर राजा दिल्ली का सरदार ११५
शब्द पायकै तीर चलावै कलयुग यही एकही ज्वान॥
अबयहि समया यहि औसरमा ताहर लाखनि का मैदान ११६
देबा धाँधूके मुर्चा मा जूझे बहुत सिपाही ज्वान॥
पिरथी बोले फिरि चौंड़ाते हमरे बचन करो परमान ११७
रानी मल्हना चन्द्रावलि का डोला तुरत लेउ उठवाय॥
इतना सुनिकै चौंड़ा बकशी डोलन पास पहूँचा जाय ११८
खबरि सुनाई सव मल्हना का जो जो कहा पिथौराराय॥
सुनि संदेशा पृथीराज का मल्हनाबोली बचनसुनाय ११९
जवै बनाफर उदयसिंह थे तब नहिं चढ़े पिथौराराय॥
बाँधिकै मुशकैसबलड़िकनकी मड़येपाँयलिह्यनिपुजवाय १२०
हथी पछार्यनि जब द्वारपर तब कहँ गये पिथौराराय॥
ब्याहे ब्रह्मा गे दिल्ली मा समरथ हते बनाफरराय १२१
ब्रह्मा रञ्जित द्वउ लरिकन ते कीन्हेनि रारिआय महराज॥
रारि मचैहैं जो नारिन ते तो सब ह्वैहैं काजअकाज १२२
इतना सुनिकै चन्द्रावलिकैं पलकी तुरत लीन उठवाय॥
चलिभा चौंड़ा लै पलकी को पहुँचा पञ्च पेड़ तर जाय १२३
रोवै मल्हना त्यहि समया मा गिरि गिरि परै पछाराखाय॥