ऊदन ऊदन के गुहरावै कहँ तुम गये फनाफरराय १२४
लाउ शारदा यहि समया मा आल्हा केर लहुरवा भाय॥
बिना इकेले बघऊदन के डोला कौन छुड़ाई जाय १२५
सदा भवानी ज्यहि दाहिनहैं ज्यहिघर सिद्धिकरैं गन्नेश॥
पारस पत्थर ज्यहिके घर मा पूरित विभो सदा धन्नेश १२६
भई सहायी शारद मायी ऊदन आयगये त्यहिकाल॥
हाथ जोरिकै योगी बोले लाला देशराजके लाल १२७
भिक्षा पावैं जो मैया हम तौ अब हरद्वार को जायँ॥
इतना सुनिकै मल्हना रोई बोली आरत बैन सुनाय १२८
रही न ईजति अब मोहबे की पलकी लीन चौंड़िया आय॥
जायकै पहुँचा पँच बिरवातर हा दैयागति कही न जाय १२९
बिना बेंदुला के चढ़वैया नैया कौन लगैहै पार॥
चीरिकै धरती ऊदन आवो ईजति राखिलउ यहिवार १३०
इतना सुनिकै ऊदन योगी घोड़ा तुरत दीन रपटाय॥
जायकै पहुँचा पँच बिरवातर यहु रणवाघु लहुरवाभाय १३१
चौंड़ा दीख्यो जब ऊदन का सम्मुख हाथी दीन बढ़ाय॥
औ ललकारा फिरि योगी का काहे प्राण गवाँवो आय १३२
इतना सुनिकै ऊदन योगी गरूई हाँक दीन ललकार॥
डोला धरिदे चन्द्रावलि का चौंड़ामानुकही यहि वार १३३
धोखे योगी के भूले ना अवहीं योग देउँ दिखलाय॥
ऍड़ लगाई फिरि बेंदुल के हाथी उपर पहुॅचा जाय १३४
ढाल कि औझड़ ऊदन मारी चौंड़ा गयो मूर्च्छाखाय॥
लैकै ढोला चन्दावलि का मल्हनापास दीनरखवाय १३५
देवा ठाकुर ते फिरि बोले अव तुम रहो यहाँपर भाय॥
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आल्हखण्ड। ४५४
