पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५५

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आल्हखण्ड1४५४ ऊदन अदन के गुहराचै कहँ तुम गये फनाफरराय १२४ लाउ शारदा यहि समया मा आल्हा केर लहुरखा भाय ।। विना इकेले वधऊदन के डोला कौन छुड़ाई जाय १२५ सदा भवानी ज्यहि दाहिनहें ज्यहिघर सिद्धिकरें गन्नेश ।। पारस पत्थर ज्यहिके घर मा पूरित विभो सदा धन्नेश १२६ भई सहायी शारद मायी ऊदन आयगये त्यहिकाल ।। हाथ जोरिकै योगी बोले लाला देशराजके लाल १२७ भिक्षा पावें जो मैया हम तौ अव हरद्वार को जायँ ॥ इतना सुनिकै मल्हना रोई बोली आरत वैन सुनाय १२८ रही न ईजति अब मोहवे की पलकी लीन चौड़िया आय ।। जायकै पहुँचा पँच विरवातर हा दैयागति कही नजाय १२६ विना बंदुला के चढ़वैया नैया कौन लगैहै पार॥ चीरिकै धरती ऊदन आवो ईजति राखिलउ यहिवार १३० इतना सुनिकै ऊदन योगी घोड़ा तुरत दीन रपटाय।। जायकै पहुँचा पँच विरवातर यहुरणवाघु लहुरवाभाय १३१ चौंड़ा दीख्यो जव ऊदन का सम्मुख हाथी दीन वढाय ।। औ ललकारा फिरि योगी का काहे प्राण गवाँवो आय १३२ इतना सुनिक ऊदन योगी गाँई हाँक दीन ललकार ।। डोला धरिदे चन्द्रावलि का चौड़ामानुकही यहि वार १३३ धोखे योगी के भूले ना अवहीं योग देउँ दिखलाय ॥ ऍड़ लगाई फिरि उदुल के हाथी उपर पहुंचा जाय १३४ दाल कि औझड़ ऊदन मारी चौंड़ा गयो मूर्छाखाय ।। लेके डोला चन्दावलि का मल्हनापास दीनरखवाय १३५ देवा ठाकुर ते फिरि बोले भव तुम रहो यहाँपर भाय ॥