पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६६

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आल्हाकामनावन। ४६५ ३ मल्हनावोली फिरिमाहिल ते काहे चढ़े पिथौराराय ।। इतना सुनिक माहिल बोले बहिनी साँच देय बतलाय ११ उड़न बछेड़ा पाँचो चाहें पारस चहें पिथौराराय ॥ डोला चाहे चन्द्रावलि का ताहर साथ वियाही जाय १२ बैठक चाह खजुहागढ़ की चाहैं रान ग्वालियर क्यार ।। इतना लीन्हे विन जैहैं ना राजा दिल्ली के सरदार १३ सुनिक बातें ये माहिल की मल्हना गई सनाकाखाय ।। धीरज धरिकै फिरि बोलति भै पिरथी देउ जाय समुझाय १४ बारह दिनकी मुहलति देवें त्यरहें डाँड़ लेय भवाय ।। जवे बनाफर उदयसिंह थे तब नहिं अये पिथौराराय १५. देखि अनाथन ह्याँ तिरियनको लूटन अये अधीराय ।। धर्मी होवें तो मोहलति अब बारह दिन की देय कराय १६ त्यरहें पाबैं जो पिरथी ना मुहबा शहर ले लुटवाय ॥ हथी पछारा था दारे पर जायकै जबै लहुस्खामाय १७ मलखे ठाकुर जब सिरसा थे तब नहिं अये पिथौराराय ।। इतना कहिकै मल्हना रानी नीचे बैठी शीश झुकाय १८ बोलिन आवा जब मल्हनाते माहिल बोले बचन बनाय ।। बारह दिन लों बुलै पिथौरा पहिले मूड़ देउँ कटवाय १६ त्यरहें दिन जो लुटै पिथौरा तो माहिल के जनै बलाय ।। बैर बिसाहा मलखे ऊदन ताते चढ़े पिथौरा धाय २० इतना कहिकै माहिल चलिमे तम्बुन फेरि पहूँचे आय ॥ जो कछु भाषा मल्हनारानी माहिल यथातथ्य गा गाय २१ कछु नहिं बाला दिल्लीवाला मल्हना गाथ सुनो यहि वार ।। मुल्हना सोचै मन अन्तर मा अवधओं कवन बचावनहार २२