नहीं तो होते मलखे ठाकुर कैसे चढ़त पिथौरा आय॥
जियत न जैवे हम कनउजको कौवा मरे हाड़ लै जाय ३५
इतना सुनिकै मल्हना बोली दोऊ नैनन नीर बहाय॥
राखो ईजति यहि समया मा जल्दी जाउ कनौजे धाय ३६
शोच विचारन की विरिया ना भैने बारबार बलिजायँ॥
इतना सुनिकै जगनिक बोले माई साँच देयँ बतलाय ३७
घोड़ा मँगावो हरनागर को अवहीं जाउँ तड़ाकाधाय॥
इतना सुनिकै रानी मल्हना ब्रह्मै खबरि दीन पठवाय ३८
माहिल ब्रह्मा जहँ बैठे थे चेरी तहाँ पहूँची जाय॥
कह्यो सँदेशा सो मल्हना को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३९
सुनि संदेशा रनि मल्हनाका बोला उरई का सरदार॥
घोड़ न देवो जगनायक कों ब्रह्मा मानु कही यहिबार ४०
आल्हा रूठे हैं मोहबे ते कनउज बसे बनाफरराय॥
घोड़ तुम्हारो फिरि देहैं ना तुमते साँच दीन बतलाय ४१
कहा न माना कछु माहिलका ब्रह्मा घोड़ दीन कसवाय॥
बड़ी खुशाली सों जगनायक सबको यथा योग शिरनाय ४२
मनियादेवनको सुमिरन करि घोड़ा उपर भयो असवार॥
जहाँ पिथौरा दिल्ली वाला पहुँचा उरई का सरदार ४३
खबरि सुनाई जगनायक की माहिल बारबार समुझाय॥
लेउ बछेड़ा अब हरनागर मानो कहीं पिथौराराय ४४
इतना सुनिकै पृथीराज ने चौंड़ा बकशी लीन बुलाय॥
कहि समुझावा सब चौंड़ा ते यहु महराज पिथौराराय ४५
हुकुम पायकै महराजा को चौड़ा कूच दीन करवाय॥
नदी बेतवा के ऊपरमा जगनिकगयोतड़ाकाआय ४६
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आल्हाकामनावन। ४६७
