जलथलजनमों जहँ दुनियामा होवों तहाँ भक्त शिरताज३१७
पिता मातु के में चरणन का ध्यावों बार बार शिरनाय॥
जिन बल गाथा यह पूरण भै भुजवलनहीं भरोसाभाय ३१८
खेत छूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाको आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतन धुनी दीन परचाय ३१९
आशिर्बाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ॥
हुकुम तुम्हारो जो पावत ना ललितेकहतगाथकसगाय३२०
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर ३२१
सुमिरि भवानी शिवशङ्कर को ह्याँते करों तरँग को अन्त ॥
राम रमा मिलि दर्शन देवों इच्छा यही मोरि भगवन्त ३२२
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई ) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गतपॅडरीकलां
निवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकृपाशङ्करसूनुपण्डितललिताप्रसाद
कृत आल्हामनावनवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥
ठाकुरआल्हसिंहजीकामनावन सम्पूर्ण ॥
इति ॥