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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२

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महोबेका प्रथमयुद्ध।

छोटि दरक्खत बहु टूटत भे रौसैं पटरी दई गिराय १०२
यहगति दीख्यो जब मालिनने बोल्यो उदयसिंहते आय॥
कौने राजा के लरिकाहौ सबियाँ डार्यो बाग नशाय १०३
काह नाम है सो बतलावो आपन देश देव बतलाय॥
सुनिकै बातैं त्यहि मालीकी बोल्यो तुरत बनाफरराय १०४
देश हमारो नगर महोबा हमरो उदयसिंह है नाम॥
फिरिकै माली अब बोलेना नाहिं तो पठैदेवँ यमधाम १०५
सुनिकै बातैं बघऊदन की माली चुप्प साधि तब लीन॥
सुमिरि भवानी शिवशंकरको ह्याँते कलम बन्दकै दीन १०६
आशिर्बाद देवँ मुंशीसुत जीवहु प्रागनरायण भाय॥
कीरति तुम्हरी जो सब गावैं तौफिरि कथाबहुतबढ़िजाय १०७
माथ नवाबों पितु अपने को जिनम्बहिं बिद्यादीन पढ़ाय॥
सो सुख पावैं देवलोक में गावैंललितचरितनितध्याय १०८
अब में ध्यावों रामचन्दको जो मम इष्टदेव महराज॥
ईज्ति हमरी जग में राखैं पुरवैं सकल हमारे काज १०९

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूमयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँडरीकलांनिवासिमिश्रबंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृतमहोवायुद्धऊदनशिकार
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

महोबेकाप्रथमयुद्धसमाप्त॥