पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/११९

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यापारागः रना। > "क्या हानि है" "ना।" "सुहागी को देखोगे ?" "ना।" "एक बार देख न लो?" "ना।" मित्र चला गया। छ वर्ष बीत गये । वंसी की हालत मे कुछ भी सुधार हुआ। सहागी का व्याह हो गया। वह दो बच्चों की मा है। की लगन उससे छिपी नहीं। उसकी सहेलियां उसे पहले की बात कहकर चिढ़ाती थीं । वह उन्हें गाली देती और ग होती थी। अब वह सिर्फ जरा हँस-भर देती है। वह बंसी विषय मे किसी से कुछ नहीं पूछती, पर सदैव बंसी के विषय कुछ-न-कुछ जानने को आतुर रहती है। उसकी- वह 'तु. अत्यंत गोपनीय है। वह एक वर्ष बाद फिर लाहौर आई। उसकी सहेलियों बंसी के हालत बताए । सुहागी ने एक बार साहस करके अन्तरंग सखी बुदन से कहा-“बुदन, चल, ज़रा उस तेरे को देखे तो कैसा है।" "देखोगी ? पर अब वह पहले सा छैल नहीं है।" "देखेंगी तो भी।" "कपड़ा खरीदना पड़ेगा। "खरीदूंगी।" "और जो वह उसी तरह