सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२
आवारागर्द

क्यों नहीं? पिता जी से खूब नमक मिर्च लगा कर तुम्ही ने तो उसकी चर्चा की थी।"

रघुनाथ ने गुर्राकर कहा "मगर मुझे क्या मालूम था कि तुम पक्के पाजी हो! दगाबाज, बेईमान..."

"पाजी-ऊजी तुम हो! मै सिर्फ तिकड़म-बाज हूँ। तुम सुनते हो या मै चला जाऊं?"

सब ने कहा "सुनाओ यार, यह तुम्हारी तिकड़म बड़ी बेढब रही।"

धीर-गम्भीर स्वर मे रामनाथ कहने लगा। सिगरेट बुझ गई थी उसे फेक दिया। "सगाई पक्की हो गई। सुन कर मेरी बांछे खिल गई। गाजियाबाद अब मै तीन चार दिन मे जाता था। घर वाली कहती-सुनती तो मैं दो-चार गालियां दफ्तर वालों को सुना देता था 'इतना काम दे रखा है कि नाक मे दम हैं।' आखिर सगाई चढ़ी, लगन आई, और सब टेहले भुगते गये। बारात मे इने-गिने आदमी थे, भण्डा फोड़ होने के डर से दिल्ली से दोस्तो का वायकाट कर दिया था। दस-पांच बडे-बूढ़े ले लिये थे। हमारे साले साहब भी बुलाये गये थे, उन्होंने लिखा था, 'छुट्टी मिल सकी तो आने की कोशिश करूंगा।' गरज ठीक समय पर बारात चली। जरा देर की फुरसत निकाल कर गाजियाबाद हो आया। घरवाली से कहा "एक बारात मे जाना पड़ रहा है। दो-तीन दिन लगेंगे, जरा होशियार रहना।" और फिर मै उबटना करा, जामा पहिन, झट नौशा वन, नई सुसराल को बारात ले चल दिया!"

(२)

मि° रामनाथ दिल्ली की एक बैंक मे क्लर्क हैं। वे मेरे बहनोई होते हैं। मेरी छोटी बहिन उन्हे व्याही है। रङ्गीली तबियत के आदमी हैं। दो महीने पहिले खबर मिली थी कि बहिन का