पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/२२

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तिकड़म २१ रामनाथ ने एक कश खीचकर धुये के बादल बनाये, फिर धीरे से कहा “मतलब यह कि यहाँ दिल्ली मे मशहूर कर दिया गया कि मर गई। बाकायदा क्रिया-कर्म हुये,तेरह ब्राह्मण आये और खा गये, पिता जी आये और रो-पीट गये। उसके भाई-वाप माँ भी सब दस्तूर कर गये।" यारों की समझ में नही आ रहा था कि हॅसे या रोये, यह सच कह रहा है या गप उड़ा रहा है। वे ऑखे फाड-फाड़ कर रामनाथ की ओर देख रहे थे। और रामनाथ कह रहा था"इस काम से निपट कर अब व्याह की बात चली। मैने साफ इनकार कर दिया। दिन में तीन चार बार प्याज का टुकड़ा आँख मे लगा लेता था,ऑसू खूब वहते थे,ऑखे सूजी रहती थीं। खाना रात को खाता था,दिन मे सिर्फ चटाई पर पड़ा रहता था। बलदेव से पूछिये ना, यह तो रोज ही आता था। बेवकूफ,यह भी मेरे साथ रोता था । बाजार से मिठाई ला-ला कर खिलाना चाहता,सिनेमा ले जाना चाहता, मगर मै था कि चटाइ हराम समझता था।" बलदेव ने कहा “अरे जालिम। तो यह सब मेरा एक्टिङ्ग था? यार, फिर तो किसी फिल्म में जाकर अभिनेता वन। क्लर्की की कलम घिसने मे क्या धरा है? मगर यार, गजब का एक्टिङ्ग था।" "एक्टिङ्ग नही था,वह तिकड़म थी।" रामनाथ ने गम्भीरता)से कहा। यारों ने कहा “वह भी तो सुनाओ, तिकड़म क्या थी? "शादी की चर्चा चलती ही रही। पिता जी सिर खारहे थे। मै 'ना-ना' कर रहा था। मगर मैंने पिताजी से दोस्त की साली की ओर इशारा करा दिया था। यह बैठे हैं हज़रत रघुनाथ,कहते २