पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/४३

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४२ आवारागर्द खाई है, मै कितना तगड़ा हो आया हूँ। इस दिलीप को तो मै योंही उठा कर फेक सकता हूँ। गृहिणी ने इतनी देर बाद पुत्र के, मित्र को देखा । दिलीप ने प्रणाम किया, गृहिणी ने आशीर्वाद दिया। इसके बाद उसने कहा, 'बैठक मे चल कर थोड़ा पानी पी लो, पीछे और बाते होंगी।' राजेन्द्र ने पूछा "वह लोमड़ी कहाँ है-रजनी " वह ठहाका मारकर हँस दिया। "वह अपने कमरे मे होगी।" माता ने उदासी से कहा। "आओ दिलीप मै तुम्हें लोमड़ी दिखाऊँ।" कह कर उसने मित्र का हाथ खीच लिया, दोनों जीने पर चढ़ गये। गृहिणी रसोई में चली गई। राजेन्द्र ने रजनी की कोठरी के द्वार पर खडे होकर देखा, मुंह फुलाये कुर्सी पर बैठी है। घर के आनन्द-कोलाहल से उसे जो,विरक्ति होरही थी वह अभी भी उसके मुख पर थी। अब एका- एक भाई और उसके मित्र को भीतर आते देख कर वह उठ खड़ी हुई। उसने मुस्कराकर भाई को प्रणाम किया राजेन्द्र ने आगे बढ़ कर उसके दोनों कंधे झकझोर डाले, फिर दिलीप से कहा--"दिलीप, यही हमारी लोमडी है। इसके सब गुण तुमको अभी मालूस नही। सोने मे कुम्भकरण, खाने मे भीमसेन, लड़ने से सूर्पनखा, और पढ़ने में बण्टादार। पर न जाने कैसे बी० ए० में पहुंच गई। इस साल यह बी० ए० फाइनल में जा रही है। क्लास में सदा प्रथम होकर प्रोमोशन पाती रही है।" दिलीप ने देखा एक चम्पक वर्णी सुकुमार किशोरी बालिका जिसका अल्हड़पन उसके अस्त-व्यस्त वस्त्रों और बालों से स्पष्ट हो रहा है, राजेन्द्र ने कैसी कदर्य व्याख्या की है। भाई बहिन का दुलार भी बड़ा दुर्गम है । वह शायद गाली-गुफ्ता धौल-धप्पा से ही ठीक ठीक अमल में लाया जा सकता है।