पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/४६

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मरम्मत 3 रक्खा है। पचास तो पकवान बनाये हैं, रात भर खट-खट, खट- खट रही। नौकर-चाकरों के नाक में दम । भैया आ रहे हैं, भैया आ रहे हैं। मै भी तो आती हूँ, तव तो कोई कुछ नही करता। तुम पुरुप लोगों की सब जगह प्रधानता है, सब जगह इज्जत । मै इसे नहीं सहन करूँगी।" रजनी ने खूब जोश और उबाल में आकर ये बातें कहीं। सब कैफियत सुनकर राजेन्द्र हॅसते हँसते लोट-पोट होगये। उन्होंने कहा, ठहर, में अभी तेरा विद्रोह दमन करता हूँ। वे दौड़ कर नीचे गये और क्षण भर ही में एक बड़ा सा बण्डल ला उसे खोल उसमे से साड़ियाँ, की, लेवेन्टर, सेन्ट, क्रीम और न जाने क्या-क्या निकाल-निकाल कर रजनी पर फेकने लगे। यह सब देख रजनी खिलखिला कर हँस पड़ी। विद्रोह दमन होगया। दुलारी जलपान ले आई। तीनो बैठकर खाने लगे। राजेन्द्र ने कहा--"कहो विद्रोह कैसे मजे मे दमन हुआ ?" "वह फिर भडक उठेगा।" "वह फिर दमन कर दिया जायगा।" "पर इस दमन मे कितना गोला बारूद खर्च होता है ?" "दमन करके शान भी कितनी बनती है।" एक बार फिर तीनों प्राणी ठहाका मार हॅस दिये । जलपान समाप्त होगया। (३) दिलीप बाबू और रजनी में बड़ी जल्दी पट गई। राजेन्द्र वाबू तो दिन भर गॉव का, ज़िमीदारी का, खेतों का मटरगश्त लगाते और दिलीप महाशय लाइब्रेरी मे आराम-कुर्शी पर रजनी की प्रतीक्षा मे पडे रहते । अवकाश पाते ही रजनी वहाँ पहुंच जाती । उसके पहुँचते ही बडे जोर-शोर से किसी सामाजिक विषय 3'