पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/७७

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का ७६ आवारागर्द आती तो वे उन्हें बड़ी देर तक घूर-चूर कर ऊपर से नीचे तक देखते, किसी से तो साफ इन्कार कर देते-कोई वजह बताते ही नहीं। किसी की आँख, कान, नाक, कमर, कपड़ा-लत्ता आदि की ऐसी आलोचना करते कि वे बुरा मान कर चिढ़ जातीं और फिर मिस्टर वेदवार से तस्वीर उतरवाने का नाम नही लेती थीं। जिन सौभाग्यशालियों का फोटो लेना वे स्वीकार कर लेते थे, उनकी शामत आ जाती थी, उन्हें वे नचा मारते थे। पहले तो वे उनके कपड़े-लत्तो के कट, रङ्ग-मैच पर बहस करते और उन्हें मजबूर करते कि वे उनकी मर्जी और रुचि के अनुसार ही तैयार करावे, फिर वे बैकग्राउण्ड की तलाश मे उन्हें लिये-लिये जङ्गल-जङ्गल न जाने कहाँ-कहाँ मारे-मारे फिरते थे। इतना होने पर लाइट, रुख, बैठने तरीका आदि सौ झंझट निकाल बैठते थे । गरज कोई हिम्मतवर माई का लाल ही उनसे फोटो उतरवाने का साहस कर सकता था। पर जिसका फोटो वे उतार देते थे, वह बम्बई शहर भर मे फैशनेबुल सुन्दरियों की ईर्षा की केन्द्र हो जाती थी। यदि मिस्टर वेदवार अधेड़ उम्र के एक बुजुर्ग और गम्भीर आदमी न होते, तो जिस तरह वे युवती लड़कियों को फोटो के मामले मे नाच-नचाते थे, उसे देख कर लोग कुछ और ही अनु- मान करने लगते । मगर गनीमत यही थी कि उन पर विश्वास और श्रद्धा सब की थी। लोग कौतूहल से उनकी बाते सुनते थे। कोई उनकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानते थे मिस्टर भाँचा एक अजब लमढींक आदमी थे। दोनो गालों की हड्डियाँ उभरी हुई, एक ऑख छोटी एक बड़ी, खिचड़ी व मोटे-मोटे सूअर के-से बाले, बेतरतीबी से छितराई हुई मूंछे, ढीला और लापरवाही से बदन पर डाला हुआ सूट । अब कहिए उनकी तस्वीर मिस्टर वेदवार खींच कैसे सकते थे? सो उन्होंने उनसे साफ