होगा। ठीक उसी प्रकार दांपत्य में भी रसोदय तो तभी होता हैं, जब पति-पत्नी जीवन की प्रत्येक सुक्ष्म और स्थूल क्रियाओं में एकीभूत हों, प्रत्येक सम पर दोनों अभिन्न हो जायँ—सुर से भी और ताल से भी।
उदय और अमला पति-पत्नी थे। जीवन की संगीत-लहरी दोनोंकी हृदय-वीणा के तारों को प्रकपित करती थी, परंतु सम पर आकर दोनो बेसुरे हो जाते थे। ताल-सुर का मेल नहीं खाता था। इससे, सब कुछ ठीक होने पर भी, उस छोटे से दांपत्य-संगीत में रसोदय नहीं हो पाता था। क्यों? सो कहता हूँ। उदय की आयु ३२ साल की थी, और अमला की १८ वर्ष। अमला से उदय का ब्याह हुए केवल १॥ वर्ष बीता था। अमला उदय की दूसरी पत्नी थी।
२८ साल की आयु मे उदय की प्रथम पत्नी का अकस्मात्दे हांत हुआ। प्रमोन्माद की मूच्छितावस्था मे ही जैसे किसी ने उसका सब कुछ अपहरण कर लिया हो। पत्नी की मृत्यु के बाद तुरत ही वह उन्माद उतर गया, और फिर उसने अपने संसार को छिन्न-भिन्न दुर्गम और असह्य पाया। अकस्मात् और असमय की मनोवेदना उसका श्रदीर्घदर्शी जीवन न सह सका, वह वेदना मे विकल हो हाहाकार करने लगा। परंतु जगत् में अंधकार हो या उजाला, उसमे जितनी भी चीजे हैं, वे तो रहती ही हैं। अमला भी जगत् में थीं, वह अदृष्ट-बल से उदय से आ टकराई। और, जब दोनों पति-पत्नी हुए, तो हठात् जीवन की सारी ही विचार-धारा बदल गई। वह भी केवल उदय ही की नहीं, अमला की भी।
अमला सोचती थी, पति एक प्रतिमा हैं; उसमे बहुत से रग भरे हुये हैं। वह एक झूला हैं; अमला जब उसे प्राप्त करेगी,