पृष्ठ:आवारागर्द.djvu/८३

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तेरह बरस बाद आम कहावत है कि दूसरी पत्नी पति को अधिक प्यारी होती है। कदाचित् इसलिये कि उसमें उल्लास और वेदना एक ही लक्ष्य-बिदु पर संघात खाती है । पति की गदह-पचीसी रफू चक्कर हो जाती है। जीवन की एक असाधारण ठोकर उसे कल्पना, स्वप्न और बाहरी रंगों की दुनिया से उठाकर भीतरी जगत् के सत्यालोक मे पहुंचा देती है । वह पत्नी को प्रेयसी समझने की शायद बेबक फी फिर नहीं कर सकता । जीवन-संगिनी का सच्चा अर्थ टीका और भाष्य-सहित उसकी समझ मे आ जाता है। खटपट, मान व्याज-कोप, ऊधम और तमाम चंचल वृत्तियों के प्रोग्राम स्थागित हो जाते हैं, और वह सावधान, गंभीर, स्थिर , केद्रित और उत्तरदायित्व पूर्ण हो जाता है। परंतु संगीत में एक साथ मिलकर बजने वाले विविध वाद्य जब तक एक सम पर आकर संघात नहीं खाते, तब तक संगीत का समा नहीं बँधता । सितार और सारंगी, तबला और हारमो- नियम, सब के ठाठ जुदा तो हैं, पर उन्हें स्वर-लहरी और ताल के साथ विवस होकर मिलकर ही चलना पड़ेगा, तभी तो रसोदय