में लड़कियाँ सड़कों की धूल में मिली रहती हैं। यदि किसी सड़क से एक मुट्ठी धूल उठा ली जाय, तो दो-चार सुन्दर युवतियाँ उसमें से निकल आना आश्चर्य की बात नहीं। स्त्री-चर्चा मे मेरा निरुत्साह देख कर उन्हे बड़ी निराशा हुई।
मेरी दासी पर उनकी शुभ दृष्टि हैं, यह मैं उनके आने के दो-चार दिन बाद ही समझ गया। परंतु इस संम्बन्ध में कुछ कहना मैंने ठीक न समझा। मुझे विश्वास था कि उन्हें अपने गौरव और दासी को अपनी रक्षा का काफी ख्याल हैं। दासी को मैंने उनकी सत्र आवश्यकताएँ पूरी करने की खास आज्ञा दे रक्खी थी। वह बहुत ही तत्परता से उनकी ज़रूरतों को रफा करती थी। वह उनकी बातों को न समझ कर घबरा जाती ढ़ी, फिर इशारे से समझाने पर हँस पड़ती थी। उस मधुर हास को बखेर कर जब वह चली जाती, तब यह मेरे नवयुवक मेहमान बटोर कर उसे हृदय में रख लेते थे। कुछ दिन में वह बहुत सा इकट्ठा हो गया। यह तो मैं कह ही चुका कि वह बहुत हँसती थी। अब वह बिखरा हुआ हास्य उनके हृदय में जमा होकर ऊधम मचाने लगा।
(४)
मुझे इन दिनों घर में रहने की बहुत कम छुट्टी मिलती थी। मुझे प्राय दिन-दिन-भर और कभी-कभी तमाम रात बाहर रहना पड़ता था। मेरे यह मेहमान अधिकतर घर में पड़े रहते। उनका विश्वास था, दौड़-धूप की उन्हें क्या आवश्यकता हैं, उसके लिये मैं हूं ही। जापान में आकर घर में पड़ा रहना, दिन में तीन बार मछली, अडा, केक और पुलाव खाना; छः बार चाय पीना, बिजली से दीदार बाजी करना, यही उनकी कर्तव्य-दृष्टि से काफी है।