फिरे चले नहीं। और जितने गवैये, बजवैए, भाँड़-भगतिए रहसधारी और संगीत पर नाचनेवाले थे, सबको कह दिया जिस जिस गाँव में जहाँ जहाँ हाँ अपनी अपनी ठिकानों से निकलकर अच्छे अच्छे बिछौने बिठाकर गाते-नाचते, धूम मचाते कूदते रहा करें।
ढूँढ़ना गोहाई महेंदर गिर का कुँवर उदैभान और
उसके माँ बाप को, न पाना और बहुत तलमलाना
यहाँ की बात और चुहलें जो कुछ है, सो यहीं रहने दो। अब आगे यह सुनो। जोगी महेंदर और उसके ९० लाख जतियों ने सारे बन के बन छान मारे, पर कहीं कुँवर उदैभान और उसके माँ-बाप का ठिकाना न लगा। तब उन्होंने राजा इंदर को चिट्ठी लिख भेजी। उस चिट्ठी में यह लिखो हुआ था—'इन तीनों जनों को हिरनी हिरन कर डाला था। अब उनको ढूँढ़ता फिरता हूँ। कहीं नहीं मिलते और मेरी जितनी सकत थी, अपनी सी बहुत कर चुका हूँ। अब मेरे मुँह से निकला कुँवर उभान मेरा बेटा मैं उसका बाप और ससुराल में सब ब्याह का ठाट हो रहा है। अब मुझपर बिपत्ति गाढ़ी पड़ी जो तुमसे हो सके, करो।' राजा इंदर चिट्ठी को देखते ही गुरु महेंदर को देखने को सब इंद्रासन समेटकर आ पहुँचे और कहा—"जैसा आपका बेटा बैसा मेरा बेटा। आपके साथ मैं सारे इंद्रलोक को समेटकर कुँवर उभान को व्याहने चढूँगा।" गोसाई महेंदर गिर ने राजा इंद्र से कहा— "हमारी आपकी एक ही बात है, पर कुछ ऐसा सुझाइए जिससे कुँवर उदैभान हाथ आ जावे।" राजा इंदर ने कहा—"जितने गवैए और गायनें हैं, उन सबको साथ लेकर, हम और आप सारे