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रानी केतकी की कहानी

कास ने अपने सारे देश में कह दिया—"यह पुकार दे जो यह न करेगा उसकी बुरी गत होवेगी। गाँव गाँव में अपने सामने छिपोले बना बना के सूहे कपड़े उनपर लगा के गोट धनुष की और गोखरू रुपहले सुनहरे की किरनें और डाँक टाँक टाँक रक्खो और जितने बड़ पीपल नए पुराने जहाँ जहाँ पर हों, उनके फूल के सेहरे बड़े बड़े ऐसे जिसमें सिर से लगा पैर तलक पहुँचे, बाँधो।

चौतुक्का

पौदों ने रँगा के सूहे जोड़े पहने। सच पाँव में डालियों ने तोड़े पहने॥
बूटे २ ने फूल फूल के गहने पहने। जो बहुत न थे तो थोड़े २ पहने॥

जितने डहडहे और हरियावल फल पात थे, सब ने अपने हाथ में चहचही मेंहदी को रचावट की सजावट के साथ जितनी समाबट में समा सके, कर लिये और जहाँ जहाँ नवल ब्याही दुलहिन नन्हीं नन्हीं फलियों की और सुहागिनें नई नई कलियों के जोड़े पँखुड़ियों के पहने हुए थीं। सब ने अपनी अपनी गोद सुहाग और प्यार के फूल और फलों से भरी और तीन बरस का पैसा सारे उस राजा के राज भर में जो लोग दिया करते थे, जिस ढब से हो सकता था खेती बारी करके, हल जोत के और कपड़ा लत्ता बेंचकर सो सब उनको छोड़ दिया और कहा जो अपने अपने घरों में बनाव की ठाट करें। और जितने राज भर में कुएँ थे, खँडसालों की खँड़साले उनमें उड़ेल गई और सारे बनों और पहाड़ तलियाँ में लाल पटों की कमझमाहट रातों को दिखाई देने लगी। और जितनी झोलें थीं उनमें कुसुम और टेलू और हरसिंगार पड़ गया और केसर भी थोड़ी थोड़ी घोले में आ गई। फुनगे से लगा जड़ तलक जितने झाड़खाड़ों में पत्ते और पत्ती बँधी थीं, उनपर रुपहरी सुनहरी डाँक गोंद लगाकर चिपका दिए और सभों को कह दिया जो सूही पगड़ी और बागे चिन कोई किसी डौल किसी रूप से फिर चले नहीं। और जितने गवैये,