का सा कौन सा दिन होगा। हमारी आँखों की पुतलियों का जिससे चैन हैं, उस लाडले इकलौते का ब्याह और हम तीनों का हिरनों के रूप से निकलकर फिर राज पर बैठना। पहले तो यह चाहिए जिन जिन को बेटियाँ बिन ब्याहियाँ हों, उन सब को उतना कर दो जो अपनी जिस चाव चोज से चाहें, अपनी गुड़ियाँ सँवार के उठावें; और तब तक जीती रहें, सबकी सब हमारे यहाँ से खाया पकाया रौंधा करें। और सब राज भर की बेटियाँ सदा सुहागिनें बनी रहें और सूहे राते छुट कभी कोई कुछ न पहना करें और सोने रूपे के केवाड़ गंगाजमुनी सब घरों में लग जाएँ और सब कोठों के माथे पर केसर और चंदन के टीके लगे हों। और जितने पहाड़ हमारे देश में हों, उतने ही पहाड़ सोने रूपे के आमने सामने खड़े हो जाएँ और सब डाँगों की चोटियाँ मोतियों की माँग से बिन माँगे ताँगे भर जाएँ; और फूलों के गहने और बँधनवार से सब झाड़ पहाड़ लदे फँदे रहें; और इस राज से लगा उस राज तक घर में छत सी बाँध दो और चप्पा चप्पा कहीं ऐसा न रहे जहाँ भीड़ भड़क्का धूम धड़क्का न हो जाय। फूल बहुत सारे बहा दो जो नदियाँ जैसे सचमुच फूल को बहियाँ हैं यह समझा जाय। और यह डौल कर दो, जिधर से दुल्हा को ब्याहने चढ़े सब लाड़ली और हीरे पन्ने पोखराज की उमड़ में इधर और उधर कवॅल को टट्टियाँ बन जायँ और क्यारियाँ सी हो जाय जिनके बीचो बीच से हो निकलें। और कोई डाँग और पहाड़ तली का चढ़ाव उतार ऐसा दिखाई न दे जिसकी गोद पंखुरियों से भरी हुई न हों।
राजा इंदर का कुँवर उभान का साथ करना
राजा इंदर ने कह दिया, वह रंडियाँ चुलबुलियाँ जो अपने
मद में उड़ चलियाँ हैं, उनसे कह दो-सोलहो सिंगार, बाल गूँध-