मोती पिरो अपने अचरज और अचंभे के उड़न-खटोलों की इस राज से लेकर उस राज तक अधर में छत बाँध दो। कुछ इस रूप से उड़ चलो जो उड़न-खटोलियों को क्यारियाँ और फुलवारियाँ सैकड़ों कोस तक हो जायँ और अधर हो अधर मृदंग, बीन, जलतरंग, मुँहचंग, घुँघरू, तबले, घंटताल और सैकड़ों इस ढब के अनोखे बाजे बजते आएँ। और उन क्यारियों के बीच में हीरे, पुखराज, अनबेधे मोतियों के झाड़ और लाल पटों की भीड़-भाड़ की झमझमाहट दिखाई दे और इन्ही लाल पटों में से हथफूल, फुलझड़ियाँ, जाही, जुही, कदम, गेंदा, चमेली इस ढब से छूटने लगें जौ देखनेवालों को छातियों के किवाड़ खुल जायँ। और पटाखे जो उछल-उछल फटें, उनमें हँसती सुपारी और बोलती करौती ढल पड़े। और जब तुम सबको हँसी आवे, तो चाहिए उस हँसी से मोतियों की लड़ियाँ मड़े जो सबके सच उनको चुन चुनके राजे हो जायँ। डोमनियों के जो रूप में सारंगियाँ छेड़ छेड़ सोहलें गाओ। दोनों हाथ हिला के उगलियाँ नचाओ। जो किसी ने न सुनी हो, वह ताव-भाव, वह चाव दिखाओ; ठुड्डियाँ गिनगिनाओ नाक भँवेंतान तान भाव बताओ; कोई छुटकर न रह जाओ। ऐसा चाव लाखों बरस में होता है।" जो जो राजा इंदर ने अपने मुँह से निकाला था, आँख की भपक के साथ वही होने लगा। और जो कुछ उन दिनों महाराजों ने कह दिया था, सब कुछ उसी रूप से ठीक ठीक हो गया। जिस ब्याह की यह कुछ फैलावट और जमावट और रचावट ऊपर तले इस जमघट के साथ होगी, और कुछ फैलावा क्या कुछ होगा, यही ध्यान कर लो।
ठाटो करना गोसाईं महेंदर गिर का
जब कुँवर उदैभान को वे इस रूप से व्याहने चढ़े और वह बाह्मन जो अँधेरी कोठरी में मुँदा हुआ था, उसको भी साथ ले