घबराये। और बोल उठे कि साहिब वह तो लाल काग़ज़ पर
था। लाइव ने जवाबदियाकिठीक लेकिनयह सफ़ेद काग़ज़पर
है क्ह लाल काग़ज़ खाली आपको सबज़ बाग़ दिखलानेकेलिये
था आप को इस में से एक पैसा भी नहीं मिलेगा। अमीचंद
ग़श खा के ज़मीन पर गिर पड़ा। नौकर पालकी में डाल के घर
ले गये डेढ बरस के अंदर पागल है। के मर गया।
उधर दखन में अंगरेज़ और फ़रासीसियों की लड़ाई न
१७५८ ई० मिटी। कोंटवाली ने भी जो १७५८ में फ़रासोसियों की तरफ़ से यहाँ का गवर्नर जनरल हो कर आया था ड्रूप्रे की तरह
अंगरेज़ों को उखाड़ना और फ़रासीसियों को अमलदारी को
फैलाना चाहा यहां तक कि अंगरेजो ने मौसली पट्टन उनसे
छीन कर दखन के सूबेदार सलाबतजंग से उस की और कई
और ज़िलों की अपने नाम सनद लिखवाली। और यहभी उस
से इकरार ले लिया कि वह फ़रासोसियोंसे कभीकुछ सरोकार
न रक्खे और सन १७६५ में सिवाय कल्लीकट और सूरत की
कोठियों के और कुछभी फ़रासीसियोंके कबज़में न छोड़ाकहते
हैं कि जब अंगरेजों ने पटुच्चेरी लिया और उस पर अंगरेज़ी
निशान चढ़ाया किने और जहाजों पर की तोपें सलामी से
गोया कान बहरे करती थी।हज़ार तापों को सलामी कुछहंसी
ठट्ठा न थी। लाली बुरी तरह से फरासीसमें कतलकियागया।
और फिर तभी से फरासीसियों ने निराश होकर यहां अपनी
अमलदारी जमाने का खयाल बिलकुल छोड़ दिया। हिंदुस्तान के दिन अच्छे थे क्योंकि अंगरेज़ी अम्लदारी में अमर
• अफसोसहै कि क्लाइव ऐसेमर्दसे ऐसी बातज़हूरमें आवे। पर क्या करें ईश्वर को मंजूर है कि आदमी का कोईकामबऐ ब न रहे। इस मुलक में अंगरेज़ी अम्लदारी शुरू से आज तक मुआ़मले की सफ़ाई और क़ोल करारकी सचाई में गायाधोबी का धोया हुआ सफ़ेद कपड़ा रहा है। ख़ाली इसी अमीचंद ने उस में यह एक छोटा सा लगा दिया है।