मसनद पर बिठायें। बादशाह से भी चौबीस लाख रूपया साल अदा करने के इक्रार परसनद हासिल हो गयी का़सिमअ़लीख़ाँ
का इरादा मीरजाफ़र की जान लेने का था। लेकिन वह कल-
कत्ते में जा रहा इस से बचगया। बहाने अंगरेज़ो के पास
मीरजाफ़र को मौकूफ़ी के बहुतथे पहले वह क़िस्तों का रुपया
बिल्कुल अदा नहीं कर सकी था। दूसरे बादशाह से लिखा
पढ़ी करता था तीसरे डच लोगों से साजिश रखता था।
उनदिनों में कम्पनीके नौकरों को तिजारतंकी कुछमनाही
न थी तऩखाह से बढ़ कर तिजारतं में फाइदा उठाते थे।
पान सुपारी तमाकू वगैरः सब चीज़ को तिजारत करते थे
जब कम्पनी को तरह कम्पनी के नौकरों ने भी माल परमह
सूल देना बंद किया बल्कि जो लोग कम्पनी के नौकर नहीं
थे उन के माल को भी अपने नाम से वे महसूल चलाने लगे
का़सिम अ़ली ख़ां घबराया। अपनी आमदनी का एक बड़ा सा
हिस्सा उड़ जाता देखा। कौंसलवालों के लिखा लेकिन कौंसल वाले भी तो तिजारतं करते थे। अपने माल पर महसूल देना किसे अच्छा लगता है कासिमअलीख़ाँ का लिखनाकुछभी ख्याल में न लाये। कासिमअलीखाँ ने गुस्से में आकर परमिट
बिलकुल मौकूफ़ कर दी यह बात सुन कर कि अब किसी के
माल पर कुछ महसूल न लिया जायगा अंगरेजों के वो छूट
गये क्योंकि फिर फेक क्या बाकी रहा। जिसभाव इनकामाल
पड़ता था उसीभाव औरों का भी पड़गया। अंगरेजानेकासिम .
अलीखांसे कहा कि तुमसिवाय हमलोगोंके और किसीकामाल
बे महसूल मत जाने दो और जबउसने इनकायहग़ैरवाजिब
कहना न मान कर मुकाबले पर कमर बांधी इन्होंने उस की
मौकूफ़ी और मीरजाफ़र की बहाली का इश्तिहार दे दिया।
मीरजाफर ने इन्हें तीस लाख रुपया नकद देने और बारह
हज़ार सवार और बारह हज़ार पियादों का खर्च चलाने के
लिये इकरार नामा लिख दिया। चौबीसवीजुलाईको अंगरेज़ी
फ़ौन मुर्शिदाबाद में दाखिल हुई और कासिमअलीख़ाँ वहांसे