१७६५ ई० सन् १७६५ के शुरू में मीरजाफ़र इस दुन्यासे कूच कर गया। और उसके भाई नज़्मुद्दौला को अंगरेज़ों ने मस्नद
पर बिठाया। इससे यह क़रार हो गया कि नाइब सूबेदार
अंगरेज़ों की सलाह से मुकर्रर हुआ करे और में उनकी
मंजूरी के मौकूफ़ न किया जावे।
लार्डक्लाइव
तीसरी मई को लार्ड क्लाइव गवर्नर और कमांडर इनचीफ होकर फिर कलकत्तेमें पहुंचा। और इंतिज़ामकीदुरुस्तीकेलिये रायदुल्लम ओर जगतसेठ खुशहालचंदको मुहम्मदरज़ाखां नाइब सुबेदारके शामिल किया। जिसरोज़ लार्ड क्लाइव कलकत्ते में पहुंचा। उसीरोज़ शुजाउद्दौला कोड़े में अंगरेज़ोंसे शिकस्त खाकर और सिवाय अंगरेज़ों पर भरोसारखनेके ओर कुछइलाज न देखकर जेनरल कार्नल के पास चलाआया। अंगरेज़ोंनेउसकी बहुत ख़ातिरदारी की। और पचासलाख रुपया लड़ाईका ख़र्च लेकर और इलाहाबाद और कोड़ाबादशाहको दिलवाकर सुलह करली। बनारस का राजा बलवंतसिंह बक्सर की लड़ाई में अंगरेज़ों से मिल गया था। वल्कि कहते कि नव्याबवज़ीर का जो मारचा इसके सुपुर्द था इसने उस मैं अंगरेज़ी लशकर चला आने दिया और यही नब्वाब वज़ीरकी शिकस्तका बड़ा सबबहुआ। इसी लिये इन्होंने सुलहनामे में यहभी लिखवा लिया कि शुजाउद्दौला बलवंतसिंह को किसीतरहपर न छेड़ें। और कुछ नुक्सान न पहुंचावे।
बादशाह से इस वादेपर कि छब्बीस लाख रुपया सालाना
जिसका क़ौल क़रार मीरजाफ़र से हुआ था अब बराबर
पहुंचा चला जायगा लार्ड क्लाइव ने कम्पनी के लिये बंगाला
बिहार और उड़िसा तीनों सूबों की दीवानी का फ़र्मान लिख-
वालिया। नाज़िम नाम को नज़मुद्दोला बनारहा। लेकिनउस
से यह अ़ह्द मान होगया कि सिवाय पचास लाख रुपया
सालाना लेने के ओर कुछ सरोकार मुल्क से न रक्खे मुल्का
काकामसब अंगरेज़ों के हाथमें रहे लार्ड क्लाइव लिखता