है कि नजमुद्दौला इस बातसे निहायत खुशहुआ और रुख़्सत
के वक़्त कहने लगा“अलहमदु लिल्लाह अब तो जितने चाहेंगे
महल बनावेंगे"। सन् १७६६ में नजमुद्दौला मरगया और उस १७६६ ई० का भाई सैफुद्दौला उस की जगह बैठा। सन १७६० में लार्ड १७६० ई० क्लाइब इंगलिस्तान को चला गया।
सन् १७६३ में जब इंगलिस्तान और फ़रासीस के दर्मियान
सुलह हुई यहभी शर्त ठहर गयी कि सन् १७४९ में यहां जो
सब फ़रासीसियों की कोठियां थीं उनके हवाले करदी जावें।
लेकिन बंगाले की सूबेदारी के इलाक़े में न वह कुछ फ़ौज
रक्खें और न कोई किला बनावें। हिंदुस्तान में इसगयी बला
को फिर जगह देना कुछ इंगलिस्तान वालों को दानाईका काम
न था। सन् १७६५ में दखन के सूबेदार निज़ामअ़ली ने जो
सन् १७६१ में अपने भाई सलाबतजंग को क़ैद करके मस्नद
पर बैठा था कर्नाटक के मुल्क पर चढ़ाई को लेकिन मुहम्मद
अ़ली की मदद पर अंगरेज़ी फ़ौज को मैदान में देख करपीछे
हटा। लार्ड क्लाइव ने मुहम्मदअ़ली को बादशाह से कर्नाटक
को जुदा सनद दिलवा दी और गंतूर छोड़कर शिमाली सर्कार*
की वैसी ही एक सनद कम्पनी के नाम लेली। परमंदराज की
गवर्नमेंट ने ख़ौफ में आकर निज़ामअ़ली का सालाना ख़राज
देनेका क़रार कर लिया और यहभी लिख दिया कि अंगरेज़ी
फ़ौज निज़ामअली की मदद करेगी। इस ज़माने में मैसूर के
राज पर हैदरअ़ली का इख्तियार होगया था। इस का बाप
सिरेके नवाब की चाकरी में पियादे से फ़ौजदार बनगयाथा।
और यह ख़ुद मैसूर के दीवान ननजीराज को फ़ौज में रहते
रहते और बहादुरी और जिगरे के काम करते करते ऐसाबढ़ा।
कि वहां के राजा के लिये तो खाने को पिंशन मुकर्रर करदिया
और आप सारे मुल्क का मालिक हो गया। बिदनौर में गड़ा
ख़ज़ाना यानी दफ़ीना भी पाया। चारों तरफ़अपनी अम्लदारी
- गंजाम बिजिगापट्टन राजमहेन्द्री मछलीबंदर और गंतर
यह पांचों ज़िले शिमाली सर्कार कहलाते हैं।