का इस्तिफा मंज़र कर लिया। और लार्ड कार्नवालिस को जो
सन् १७६३ में इस उहदे से इस्तीफ़ा देकर गया था फिर गव-
र्नर जेनरल मुक़र्रर कर के कलकत्ते को रवाना किया। लार्ड
कार्नवालिस की राय मार्कस विलिज़्ली से बिल्कुल बर्ख़िलाफ़
थी। बल्कि हम तो यही कहेंगे कि उस मालिक पैदा करने-
वाले की राय के भी बर्ख़िलाफ़ थी। क्योंकि मार्किस विलिज़्ली
तो यहां के इन फसादी रईसों को ज़ेर कर के अखण्ड राज
अपनी सर्कार का जमाना चाहता था। और लार्ड कार्नवालिस
इन्हें बचाना बल्कि अक्सर इलाके जो सर्कारी तहतमेंआगये
थे उम को भी लौटा देना। कौन जाने यही सबब था कि
तीसवीं जुलाई को तो वह कलकत्ते में पहुंचा। और पांचवीं
अक्तूबर को ग़ाज़ीपुर में इस दुनियां से चलबसा। मक़बरा
इस का वहां देखने लाइक है सरजार्ज बार्लि जो उस वक्त
कौंसल के अव्वल मिम्बर थे गवर्नर जेनरल के उहदे का
काम अंजाम देने लगे। और वही फिर उस उदे पर बोर्ड
आफ कंट्रोल की मंजूरी से मुक़र्रर हुए।
सेंधिया से फौरन सुलह हो गयी और हुल्कर से पंजाब में व्यासा के कनारे जहाँ वह सिक्खों से मदद लेने को गया था अहदनामा लिखवा लिया। जयपुर और बूंदी पर से कि वहां के राजा सार के वफ़ादार दोस्त थे हिफाज़त काहाथ बिलकुल खींच लिया और मरहठों का गोया इन्हें शिकारबना दिया। जयपुर के वकील ने खूब कहा था। कि सर्कार ने अपना ईमान अपनी जरूरत के ताबे कर लिया।
१८०६ इसी अर्स में कहीं मंदराज के कमांडर इनचीफ ने कोई
हुक्म इस ढब का जारी कर दिया था कि पल्टन के सिपाही
परेड पर कान में बाली पहन कर या माथे में तिलक लगाकर
न जाया करें। और पोशाक भी कुछ नये किस्म को पहनें।
सिपाहियों ने यह झूठा शुबहा करके कि सकारकोहमारेधर्म
में दखल देना मंजूर है बिल्लूर के किले में जहाँ टोपू का घर
बार नज़र्बन्द रक्खा गया था। अंगरेज़ी अफ़सर और गोरों पर