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इतिहास तिमिरनाशक


तो कुछ ख़याल में नहीं लाया। लेकिन अकृरलोनी का फ़ौज समेत लुधियाने में पहुंचना सुनकर इस तरफ़ से बिल्कुल निरास हो गया। और सतलज को सरहद मानकर पच्चीसवीं १८०९ ई० अप्रेल सन् १८०९ मैदोस्तीके अ़हदनामेपर दस्तखत करदिया।

अ़फ़्ग़ानिस्तान के तख़त पर अहमदशाह दुर्रानी का पोता शुजाउलमुलुक था। उस के पास लार्डमिन्टो की तरफ से मोंटस्टुअष्ट एलफिन्स्टन पहुंचा। शुजाउलमुलक ने बड़ी खातिरी की लेकिन दोस्ती लिये सर्कार से मदद के तौर पर कुछ रुपया मांगा वह लार्ड मिन्टो ने मंजूर नहीं किया। ईरान में इंगलिस्तान के खुद बादशाहकी तरफसे वकील आया ओर यहाँ से भी सरजान मालकम भेजा गया।

मंदराज की फौज में सिपाहियों के देरोंके खर्च का अफ्सरों कोठीके के तौर पर कुछ मुक़र्रर चलाआताथा। सरजार्जगालीने इस तरीके को मोकूफ़ करना चाहा। इसमेंऔरकई औरभीबातों में फ़ौजी और मुलकी साहिबों के दिलों के दर्मियान फर्कळ आ गया। गवर्नरकोबादशाहीफ़ोज और हिन्दुस्तानीसिपाहियों पर भरोसा था। हुक्मदिया कि कम्पनी को पलटनोंमज़िनकोत्तरफ से खटका पैदा हुआथा गोरे और सिपाहो अपनेअफसरोंसेजुदा कर दिये जायें इस पर श्रीरंग पट्टन में अफसरों नेबलवा किया बादशाही फ़ौज को किले से बाहर निकाल दिया। और बाहर छावनी पर गोला चलाना शुरू किया। चितलदुर्ग को सर्कारो फ़ौज भी इनके शामिल होने को आती थी। लेकिनबादशाही के रिसाले ने रास्ते ही में छितर बितर कर दी। हैदराबाद में भी सर्कारी फ़ौज सर्कशी पर मुस्ताइद हुई थी और जलना और मौसलीपट्टन की फौज को शामिल होने के लिये चिट्ठी भेजीथी। लेकिन फिरकुछसमझ गयी। कुसूरमुफ चाहा। लार्डमिन्टो उस वक्त मंदराज में था। बीस अफसरों को मौकूफ़ किया। बाकी का कुसूर मुआफ कर दिया।

१८१३ ई० सन् १८१३ में सार्कार कम्पनी को पार्लीमिंट से इस मुल्क की नयीं सनदमिली। और उसकीशर्त्तों के बमुजिब इंगलिस्तान