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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/५७

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दुसरा खण्ड


पर कुछ दावा न करे। सिंध के अमीरों से भी कोलकरार हो गया कि उस राह सर्कारी फ़ौज के जाने आने में कुछ रोक टोक न होवे। निदान ०५०० सारी फ़ोज बंगाले और बम्बई की ११० तोपों के साथ सर जान कोन साहिब बम्बई के कमां- डरइनचीफ़ के तहत में सिंध और बलूचिस्तान की राह सिंधु- नदी ओर बोलानघाटा पार होकर कन्दहार में पहुंची। ओर १८३६ ई० आठवीं मई को शाहशुजा वहाँ तख्त पर बैठा बड़ी धूम धाम से उसकी सलामी हुई। सरविलियम् मेकनाटन साहिब सकार की तरफ़ से एलची के तोर पर शाह के साथ थे। अलक्जेंडर बर्निस साहिब भी हमराह थे। इनको उमेद थी कि अफग़ानिस्तान में दाखिल होते ही रअय्यत शाह की तरफ रुजू हो जायगी। लेकिन वह बात बिल्कुल जुहूरमें नहीं आयी। यहाँ तक कि शाह ने जब वहां के दस्तर बमुजिब दस हज़ार रुपया नालबन्दी को और कुरान कसम खाने को शिलज़ई सदारों को पास भेजा। उन्होंने रुपया तो ले लिया और कुरान वैसे का वेसा वापस किया। तेईसवी जुलाई को बारुद से फाटक उड़ाकर सरकारी फौज़ने गढ़ ग़ज़नीलिया। और सातवीं अगस्तको फ़तह का निशान उड़ाती काबुल में दाखिल हुई दोस्तमुहम्मद तुर्किस्तान की तरफ भाग गया। शुजाके बटे शाहज़ादा तेमूरले साथ जो पांच हज़ार सिपाही पिशावर से काबुल को रवाना हुए थे और जिनकी मदद के लिये रणजीतसिंह ने छ हज़ार सिख जेनरल वंतूराके तहत में तैनात किये थे। वह भी खेबर घाटेकी राह अलोमसजिद में लड़ते और जलालाबादका किला लेते तीसरी सितम्बर को काबुल में आन पहुंचे। जब सर्कार ने देखा कि शुजा काबुल में अपने बाप दादा के तख़त घर बैठ गया उस तखत की सुस्त बुनयादी पर मुत्लक लिहाज़ न करके पुछ थोड़ी सी बंगाले की फोज वहां इन्तिज़ाम के लिये छोड़क्षऔर बाकी सब को हिन्दुस्तान में वापस तलब कर लिया। कन्द्रहार जाते वक्त बलूचिस्तान के हाकिम मिहाबखां ने कुछ छेड़छाड़ की थी इसी लिये बम्बईकी फौज ने लोटते वक्त उस