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इतिहास तिमिरनाशक


का किला किलात तोड़ डाला। और वह भी उस लड़ाई में बहादुरी के साथ मारा गया। लार्ड अकलैंड को कबुल फतह होने की खुशी में विलायत से अर्ल का खिताब आया। सर जान कीन बेरन हुआ औरभी बहुताका उनको खिदमत मुता- १८४० ई० बिक़ दी बढ़ा। चौथी नवम्बर को जब सरविलियम मेकनाटन साहिब हवा खाकर अपनी कोठी को आते थे रास्ते में एक सवार ने खबर दी कि दोस्तमुहम्मदं हाज़िर हे और फिर दोस्तमुहम्मद ने बढ़कर और घोड़े से उतरकर तलवार नज़र दी। मेकनाटन साहिब ने उसकी बड़ी ख़ातिरीको । नज़रबन्द रहने के लिये हिन्दुस्तान में भेज दिया इस अर्स में छोटे छोटे लड़ाई झगड़े बेशक हर तरफ होते रहे। लेकिन वह किसी गिनती में न थे। कभी कोई सदार मालगुजारी अंदा करने में देर करता सरकारी सिपाही उसका गढ़ किला तोड़ फोड़कर उसे होश में लादेते। कभी कोई दोस्तमुहम्मद के बेटे अकबरखां की मदद के लिये सिर' उठाना चाहता वहां माह फ़ोरन पहुंच कर उसे उसी जगह दबा देते। यहां तक कि सर' विलियम् मेकनाटन साहिब ने समझा कि अब मुल्क का इन्ति- ज़ाम बखूबी होगया और कमद किया कि अलक्जेंडर बर्निस: १८४१ ई० को अपने उद्दे पर मुकर्रर करके आप गवर्नरो के उल्टे पर जो सकीर से मिलाथा बम्बई चले आवे। और जो कुछ सकारी फोज़ काबुल में रह गयो थी उसे भी हिन्दुस्तानको तरफ रवाना कर दें। यह न सोचे कि अफगानिस्तान मुसलमानों का मुल्य है। हिन्दू और मुसल्मान में जमीन और आसमान का फर्क है। वहांवाले समझे थे कि शाहशुजा अंगरेज़ों का कठपुतली है और तमाशा यह कि अंगरेजों की बदौलत उसे अपने बाप दादा का तखत नसीब हुआ तो भी वह इन से नाराज़ था। अपने मुल्क में इन का रहना. हर्गिज़ पसंद नहीं करता था। उधर ईश्वर को भी मंजूर था कि चाह जैसा कोई बड़ा ताकत वाला अलमन्द क्यों नहीं एक दिन ठोकर, खाजावे बल्कि यह इस को-बड़ी मिहानी है क्योंकि ऐसोही ठोकरे