पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/७

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दुसरा खण्ड।


जो साल में चार बार यानो सिमाहीवार हुआ करताथा कोर्ट आफ प्रोप्राइटर्स यानी मालिकों की कचहरी कहलाया। उसमें जो पांच हज़ार रुपये और उस से ऊपर के हिस्सेदार थे उन्हें राय देने का इख़तियार था। और आईन कानून बनानाऔर नफ़े का बांटना भी इन्हीं के हाथ था। बाकी सब काम के लिये यह अपने दर्मियान से साल के साल चौबीस आ- दमी कारवारी मुकर्रर कर देते थे इस चौबीसी का नाम कोर्ट आफ़ डेरेकृर्स रहा बीस हज़ार से कम का हिस्सेदार डेरेकृर नहीं हो सकता था। और उन का मीरमजलिस चेअरमैनकह- लाता था। हिंदुस्तान में होते होते तीन इहाते हो गये। यानी कलकत्ता बम्बई मंदरास और तीनोंमें तीन प्रेसिडेंट वा गवर्नर अपनी अपनी कौंसल समेत रहने लगे। उस वक़्त मुलकी साहिब लोगों के चार दर्ज थे। पांच बःस तकमुतसट्टी पांच से आठ तक कोठीवाले आठ से ग्यारह तक छोटे सो- दागर ओर ग्यारह बरस हिन्दुस्तान में रहने के बाद बड़े सोदागर कहलाते थे इन्हीं, बड़े सोदागरोंमें से पुराने साहिबों को चुन कर कौंसल का मेम्बर बनाते थे।

निदान सन् १९०९ में सर हिनरी मिडलटन इस कम्पनी-१९०९ ई० का भेजा हुआ तीन जहाज़ लेकर सूरत में आया लेकिनख़रीद फरोख़त के बाद में हाकिम से तकरार हो जाने के सबब उस वक्त वहां कोठी खोलने की परवानगी नहीं मिली। सन् १९१३ जहांगीर ने इन्हेंसूरत घोघा खंभात ओर अहमदाबाद में और फिर थोड़ेही दिनों बाद शाहजहांने सिंध और बंगाले में भी कोठियां खोलने की परवानगी दी। महसूल साढ़े तीन रूपया सेकुड़ा ठहरा यह उसवकतकिसके ख़यालमें था कि इसीकम्पनी के नौकर उस की औलाद और उस के जानशीन को कैद कर के रंगन ले जावेंगे। और सारे हिंदुस्तान में अपना सिक्का चलावेंगे।

सन् १९३९ में इन्होंने चंद्रगिरि के राजा से जो बिजय-१९३९ ई० नगर बालों की औलादमें से था परवानगोलेकर मंदराजबसाया