शान के हाथ रहा। इक्कीसवीं दिसम्बर को अंगरेजी फ़ौज ने
सिक्खों के मोरचों पर जो उन्हों ने फेरू * के पास जमाये थे
हमला कर दिया। उस रोज़ रात को भी लड़ाई होती रही।
और मेजर ब्राड़फुट अम्बालेका अजंटउसी लड़ाई में काम आया।
लेकिन सबेरा होने के पहलेही दुश्मनोंमें से वहांएक भी बाक़ी
न रहा। बहुत से तो उसी जगह अंगरेज़ी सिपाहियोंके हाथ
से कट मरकर मिट्टी में मिले और जो बाक़ी रहे सब के सब
सतलज की तरफ़ चले। सुबरांव के पास हरी के पत्तन पर
पहुंचकर डेराउंडाती अपना सतलजके दहने कनारेरक्या और
आप लड़ने के लिये सतलज के बायें कनारे रहे। सतलज
में नावों का पुल बना लिया था सर्कारी फ़ौज भी उसी जगह
उनके मुक़ाबिल जा पड़ी। और महीने भर से ऊपर दोनोंफ़ौज
इसी तरह बे लड़ाईपडीरही। अंगरेज़लोगतो अपनेबड़े क़िला-
शिकन तोपरख़ाने के जिसे अंगरेज़ी में सीजट्रेनकहतेहे पहुंचने
के इन्तिज़ार में थे। और स्विच लोग इस भरोसे पर थे कि
अब ये दबकर सुलह कर लेंगे। इसी अर्स में जेनरल सर
हारीस्मिथ ने लुधियानेके नजदीक अलीवाल में सर्दार रंजीत
सिंह को जिस ने वहां कुछ सिक्ख जमा कियेथे मारहटाया।
और राजा गुलाबसिंह तीन हज़ार आदमियों के साथ जम्बसे
लाहौर में दाखिल हो गया। निदान दसवों फेब्रुअरीसन१८४६
को नर के तड़के सर्कारी फौज ने सिक्खों पर जो अपनेमोरची
१८४६ ई० के अंदर ग़ाफ़िल पड़े हुए थे हमला किया। और थोड़ी ही देर की सख़त्त लड़ाई में उन का पेर मैदान से उखाड़दिया।
ऐसी घबराहट के साथ भागे। कि उन के हुजूम भी
टूट गया आधे से ज़ियादा आदमी सतलज में डूबकर मरे।
ग़रज़ यह लड़ाई बड़ी भारी हुई। और इसी लड़ाई के हारने
इस गांव का असली नाम फ़ीरोज़शहर बतलाते हैं और इसी को अंगरेज़ फ़ीरोज़शाह कहते है।
†इस किताब का बनानेवाला उस वक्त सिक्खोंके मौरचों में था सर्कार का भेजा हुआ गया था।