पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/७७

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दुसरा खण्ड।


से सिक्खों की ख़ुदमुख्ता़र सल्तनत जो रंजीतसिंह ने इस मिह्नत से बनायी थी हमेशा के लिये ग़ारत हो गई। सर्कारी फ़ौज उसी रोज़ दूसरे घाट पुल बांधकर सतलज पार उतरी। और फिर कोई ग़नीम सामने न रहने से बाफ़राग़त मंज़िल ब मंज़िल लाहौर की तरफ़ कूच करने लगी। कसूर के डेरों में राना गुलाबसिंह गवर्नर जेनरल की खिद- मत में हाज़िर हुआ। और फिर लुलियानी के डेरों में महाराज दलीपसिंह को भी ले आया। बीसवीं फेब्रुअरी की सर्कारी फ़ौज के साथ गवर्नर जेनरल लाहौर में दाख़िल हुए। और नवीं मार्च को आ़म दर्बारमें महाराजने अपनेसब सर्दारों समेत आकर नये अ़हदनामे पर मुहर दस्तखत किये। इस अहदनामे को रूख से लाहौर के बिल्कुल इलाक़े जो सतलज इस पार से। जलंधर दुआब समेत सर्कार की अ़मल्दारी में आगये। ब्यासा सरहद्द ठहरी पचास लाख रुपया लड़ाई के ख़र्च की बाबत महाराज ने नक़द अदा किया। और एक करोड़ के बदले जम्मू और कश्मीर दे दिया कि वह सर्कार ने फिर रुपया लेकर महाराजगी के ख़िताब के साथ गुलाब सिंह को इनायत फ़र्माया। जो बात रानी चंदा और उसके यार राजा लालसिंह ने गुलाबसिंह को ख़राबकरनेकीसोचीथी उसीसे गुलाबसिंह को सारी बातबनगयी। क्यामहिमा है सर्व शक्तिमान जगदीश्वर की। जिस क़दर तीवें लड़ाई में गयी थी। बिल्कुल सर्कार के हवाले कर दी गयी। निदान गवर्नर जेनरल ने महाराज और महारानी के कहने मुताबिक कुछ थोड़ी सी फ़ौज लाहौर में रहने दी। और बाकी सब अपनी छावनियों को रवाना हुई। ओर यहभी ठहरगयी कि सिक्खों को फ़ौज में बीस हज़ार से ज़ियादा पैदल और बारह हज़ार से ज़ियांदा सवार न रहें। और गवर्नमेंट की इजाज़त बिदून और मुल्कके आदमी अफसर न बनायेजावें। महाराजगुलाब- सिंह ने जब कश्मीर में अपना कब्ज़ा करने के लिये आदमी और सिपाही भेजे वहाँ के सूबेदार शेख़ इमामुद्दीन ने सबकी