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इतिहास तिमिरनाशक


अहदनामा होगया था। सेन १८१८ मैं जबबुंदेलखड पेशवामें अंगरेजी ने लेलिया फ्रांसी का इलाका आज के वारिस को बहाल रवखा। उसके पोते राव रामचंद्र को सन १८३२ में राजा का खिताब दिया। और उस ने सन् १८३५ में मरते वक्त एक लड़का गोद लिया। सर चार्लस मेटकाफ ने गोदलेगा नामंजूर करके भाऊ के एक लड़के राव गंगाधर को भी तबतक जीता था गद्दी पर बिठाया। इसके वक्त में ऐसी बेइन्तिज़ामी हुई कि अठारह की जगह कुल तीन ही लाख वसूल होने लगा। इस ने भी सन १८५३ में मरते वक्त एक लड़का गोद लिया लेकिन सर्कार ने मंजूर नहीं किया। और दूसरा कोई वारिसन रहने के सबब सारा इलाका ज़ब्त कर लिया।

उसी साल कर्नाटक भी मंदराज हाते में मिला सन् १८०१ मे अज़ीमुदीलाकोवहांकानवादबनाया था। लेकिन अहदनाम में “ नस्लन् बाद नसलन , यानी मोरूसी होनेका कुछज़िकर नहीं था । सन् १८५३ मैं जब उसका पोता लावलद भरा ज्याजमनाह उसके चचा ने दावा गट्टी का किया । सकार मे नामंजूर करके उसके और उसको कुनने के लिये अच्छा खाया पिंशन मुकर कर दिया।

सन् १८०१ के अहदनामे मुताविक हैदराबाद के पव्वाब को.५000 प्रियाद २००० सवार और चार बाटरो तोपखाने का खर्च जी सकार की तरफ़ से काटिजंठ के तौर पर वहारहता थो श्रद्धा करना चाहिये था लेकिन इसमें हीला हवाला होने लगा। ओर रुपया धाकी पड़ा । सन् १८४३ में भव्बाबकोइतिता दीगयी कि अगर प्रागे रुपया बराबर अदा न होगा। कुछइलाका निकाल लिया जायगा । मुसामला और भी बदतर हुआ नाचार १८५१ में लार्ड डलहौसीने कला भेजा कि अवइलाका लेना पड़ा । गो नथ्वाब के आवभियों ने रुपया अदा करने करने की शोशिश की लेकिन जब ज़ाहिरा माउमेदी मालूम हुई सर्कार ने सन् १८५३ के अहदनामे मुताबिक फोन खर्च के लियेबराड़ घोर; इलाकों में अपना इन्तिज़ाम करलिया। और फिर