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पृष्ठ:इतिहास तिमिरनाशक भाग 2.djvu/८५

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दुसरा खण्ड


सन् १८६० के अहदनामे मुताबिक सिर्फ बराड़ काफ़ी समझकर बाकी सब इलाकों को छोड़ दिया।

सन् १७९९ में जबलार्ड विलिजलीने मैसूर को रियासताफिर काइम की अहदनामे में यह शर्त लिखगयीथी कि जबज़रूरत होगी सर्कार अपना इन्तिजामकरलेगी। सन् १८३० में जबराजा भी ग़लत और ज़ियादतीसे रअय्यत ने सर्कशी और बग़ावत इखतियार की लार्ड बॅटिकने वहां की हुकूमत अपने हाथ में लेली। राजा को अहदनामे के मुताबिक आमदनी का रुपया जो खर्च से बचा हवाले किया। महसूल घटा रअय्यत को सुख चेन मिला। मरज़ ऐसा अच्छा इन्तिजाम हुआ। कि जहां ४४ साल मुशकिल से वसूल होता था ८२ लाख होने लगा। लार्ड हाडिंग से राजाने अपने इख्तियार की बहाली चाही। लेकिन यह बात मंजूर न हुई। सन् १८५६ में उसने लार्ड डलहौसी सेवाभी। उसने भी नामंजूर की। लार्ड डलहौसी को भरोसा कोर्ट आफ हेरेकृर्स काथा। और कोर्ट आफ डेरेकृर्स को निरा अय्यत के फाइदे का लिहाज़ था *।

उसी साल यानी जिसमें नागपूर झांसी और कर्नाटक वाले लावलद मरे वाजीराव पेशवा भी बिठूर में ७० बरखका होकर लावलद मरगया। उसके गोद लिये लड़के नान्हाराव ने आठ- लाख का पिंशन जो सन् १८९८ में बाजीराव को दिया गया था अपने नाम बहाल चाहा। यह क्योंकर होसकता था। पिंशन तो होनहयात था। नान्हाने विलायत मुखतार में था। यहां और विलायत दोनों जगह से उसको दावा डिस मिस हुआ।


राजा अपने इखतियार की बहाली बराबर चाहतारहा और जो की गवर्नर जनरल हुए सब की तरफ से बहाली क्या लडका गोद लेना और मान की रियासत का वारिस बनाना भी नामंजूर होता रहा लेकिनसन् १८६६ में सेक्रेटरी आफस्टेटने दीनों बातों को मंजूर करलिया लड़काअभी (१८००) नाबालिग है जब बालिग़ होकर इसके लाइक समझा जायगा इख्तियार बहाल होजायगा।