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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/११४

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इन्दिरा

लड़कपन में आप लोगों ने उसे देखा था। तो फिर मैं पकड़ी क्यों कर जाऊंगी?

वे―बात की बात में। नये आदमी को परिचित बनाने से वह सहज ही पकड़ा जाता है।

मैं―नहीं तो आप मुझे सब बातें लिखा पढ़ा दें।

वे―यही तो मन में विचारा है। किन्तु सब बातें तो सिखाई जाती नहीं। मान लो कि यदि कोई बात सिखलाना भूल जायं और वैसी ही कोई बात निकल आवे तब तो तुम पकड़ी जाओगी न? और यह भी मान लो यदि कभी असली इन्दिरा आँ पहुचे और तब ‘दोनों में असली इन्दिरा कौन है’ इस बात के विचार होने के समय पहिले की बातें पूछे जाने पर तुम्हीं जाखी ठहरोगी।

इस पर मैं ज़रा मुस्कुराई, क्योंकि ऐसी अवस्था में हंसी आपही आ जाती है। किन्तु अभी भी मेरे सच्चे परिचय देने का समय नहीं हुआ था, इस लिये मैं हंस कर बोली―

“सुनिये! मुझे कोई नहीं ठग सकता। देखिये, अभी आप मुझ से पूछते थे कि तुम मनुष्य हो, या कोई मायाविनी! सो, प्यारे! मैं सचमुच मनुष्य नहीं हूं―(यह सुन्न कर प्राणनाथ कांप उठे) तो फिर मैं कौन हूँ? यह बात पीछे कहूंगी। पर अभी केवल यही कहती हूं कि मुझे कोई पकड़ नहीं सकता।”

बह सुभ प्राणनाथ सन्नाटे में श्रागये क्योंकि वे बुद्धिमान थे, कामकाजी लोग थे; यदि ऐसे न होते तो इसने थोड़े दिनों में इतने रुपये क्यों कर पैदा कर लेते? वे बाहिर से जरा रखे थे जैसे