पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/११३

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अठारहवां परिच्छेद।

ले गये हैं। इसलिये उसे घर में लाने से जाति जायगी।” तो फिर तुझे इन्दिा बना कर घर ले जाने में अब आप को इस बात का डर क्यों नहीं है?

वे―अब वह डर क्यों नहीं है? पूरा डर है। किन्तु उस दिन मेरे प्राणों पर नहीं आ पड़ी थी पर अब जान ओखो का मामिला हो गया है। तो बतलाओ कि जाति बड़ी है या जान? और वह भी कुछ भारी झंझट की बात नहीं है। क्योंकि इन्दिरा के जातिभ्रष्ट होने की बात कोई भी नहीं कहता। कारदीघी में जिन लोगों ने डकैती की थी, वे सभी पकड़े गये; उन लोगों ने एकरार किया और अपने इज़हार में कहा है कि “इन्दिरा के गहने कपड़े ले कर हम लोगों ने उसे छोड़ दिया। केवल अब वह कहां है, या उस का क्या हुआ, यहां बात कोई नहीं जानता” तो फिर उसके मिलने पर एक कलंकरहित कहानी अनावास ही गढ़ ली जा सकती है। मैं आशा करता हूं कि रमण बाबू जो कुछ सिख देंगे, वह उस बात की सहायता करेगा। यदि उस पर भी कोई बखेड़ा खड़ा हो तो गांव में जाति भाइयों को कुछ दक्षिणा देने ही से सारा गोलमाल उंढा हो जायगा?

मैं―यदि वह सब झंझट दुर हो जाय तो फिर क्या है?

वे―बस अब यदि कुछ बखेड़ा है तो तुम्हारे कारण! सो यही कि तुम यदि जाखी इन्दिरा बल कर पकड़ी जाओ?

मैं―तुम्हारे घरवालों में से कोई भी न तो असली इंदिरा के पहिचानते हैं और न मुझे चीन्हते हैं क्योंकि केवल एक बार