पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/१२५

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बीसवां परिच्छेद।

कामिनी ने कहा―हां! हां!! इसमें हर्ज क्या है? ज़रा ठहरिये अंधेरा हो गया है, दीया ले आऊं।”

यह कह कर कामिनी मुझे इशारा करती हुई दिया लेने चली गई। उस के मुझ से कहा―“आगे तुम जाओ पीछे से दीया लिये मैं जीजा को ले आऊंगी!” फिर मैं तो पहिले से मन्दिर में जाकर बरामदे में बैठ रही।

वहीं दीया रख के (यह कह आई हूँ कि खिड़की से रास्ता था) कामिनी मेरे प्यारे को मेरे पास ले आई। वे आते ही मेरे पैरों तले पछार खाकर गिर गये और पुकारने लगे―

“कुमुदिनी! कुमुदिनी!! यदि आई भी तो अब मुझे त्याग मत करना।”

दो चार बार जब उन्होंने यही बात कही, तब कामिनी चिढ़ कर बोल उठी―

“आओ, जीजी! उठ आओ। यह मर्दुआ कुमुदिनी को चीन्हता है, तुम्हें नहीं चीन्हना!”

यह सुनते ही उन्होंने घबड़ा कर पूछा―

“अरे! जीजी! जीजी कौन है?”

इस पर कामिनी ने झुंझला कर कहा―“मेरी जीजी! मेरी इन्दिरा!! इन्दिरा!!! क्या कभी मेरी जीजी का नाम आप ने नहीं सुना है?

यों कह कर दुष्टा कामिनी दीया बुझा और मेरा हाथ धर कर खींचती हुई ले चली। हम दोनों जनीं खूब तेज़ी से दौड़ती हुई घर में चली आई। फिर वे कुछ होश हवास ठीक होने पर हम