पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/१२६

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इन्दिरा।

हो पोछे छोड़े। किन्तु २ तो न जानी राह, दूसरे अंधेरा, को ठीक. खाकर गिर पड़े। हम दालों चाहिने पास ही यी, को होय जनी ने दो श्रोर सेल का हाथ थाम कर उठाया जमिनी ने उन्हें खुश कर दे हीरे कहा--" मलोत विद्या की, तुम्हारी रक्षा के लिये तुम्हारे पीछे लगी डालीती है।"

यह कर उन्हें खींती हुई अपने शयनमन्दिर में ला बैशायर। वहाँ दोया मा था, सो उंदो में उन्हों ने हम दोनों को देख कर - यह क्या? यह तो शामिनी और हुनुदिनी है। इस पर मिनो मारेको के इस कहो कर बोली-..." हाय रे ! अभाग्य ! का ऐली ही सामने रुपये पेदा कियेथे १ ज्यादा होते हो। यह कुमुदिनी नक्षी है; इन्दिरा है! इन्दिरा !! इन्दिा !!! श्राप अर्धा गिनी ! अशजी दुलहिन को भी पविबानते ? छिः छिः !!"

तब मेरे प्राणेश्वर ने मारे अानन्द के प्रज्ञान हो मुझे गोदो में खींच लेने के बाद कामिनी को गोद में खींच लिया और कामिनी उसके गाल पर तमाचा जमा कर हसतो हुई वहां से चल दी।

उस हिम के आनन्द की बात मेरे कहे ही नहीं जातो। घर में खूब धूम धामज गई। उसो रात को कामिकी में और 30 बाबूम से कम खो बार वायुद्ध हुआ, पर हर बार प्राण- भासद झारे।