पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२६
इक्कीसवां परिच्छेद ।

मुलीसवा परिच्छेद । १२६ मैं कह पाई है कि कामिनी और मैं रह रह कर झांका करती थी। मैं ने देखाश मल्ल जी यमुना उकुर न ल पत्ती होकर प्रभा रही हैं : का वास लील से भो दरद चुका था, कालीन का स्व र छ मानी छोटी छोटी थी, पर दुरदुरी , राष्ट दोनों मोटे मोटे थे, पर समरे थे। उन के गहने कपड़े सभी में महावर की बहार, काले पर लाल रा . मा चनु स्वाकुल और माथे र मुझे वालो की बहार, के शरर झा व्यास और परिधि हेज कर मेरे प्यारे उन्हें कहा स्वरूप मड़ियो" कह कर के शरते थे : अजनालो कोर यनुन लदा कोष्ण को - मन यो मरते है, उ र ने पदमा काल यो । यद्यपि मे यदुना जातीमो तक मथुरा नहीं कई थी, अर ली है. बोज खन्दर रखतही चरमपी भानही ती थों, हो लेको बाद म.डो लह मतलाइ लमका मोर असार डोन्मान कर वे नारे सोच के पुला ले लिये उन्हीं मेरे प्यारे

  • २६ मी तुम झुमा कर कर कह लो समय

ने राजे, : वा. पूछा- यमुना ने कहा भी है जो !' इस पर मरे पोछे ले कामिनी बोल उठी