सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/१३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३३
इक्कीसवां परिच्छेद।

इन बातों पर प्यारी जीजी में कान नहीं दिया था, उन्होंने पूछ―“भैंस की बात कैसी!”

कामिनी बोली―किसी देश में तेंलियों के घर भैंस कोल्हू चलाती है, यह उसी की बात हो रही है।”

यह कह कर कामिनी भागी। बार बार यमुना जीजी को तेलवाली बात की याद दिलाना अच्छा नहीं हुआ―किन्तु कामिनी ख़राब औरतों को देश नहीं सकती थी। इस पर प्यारी बाबी मारे गुस्से के अंधी हो और फिर कुछ न बोल कर उ० बाबू के पास जा बैठी। सब मैंने कामिनी को पुकार कर कहा की―“कामिनी! अरी! देवरी! इस बार प्यारी ने कृष्ण को पा लिया।”

कामिनी ने दूरही से कहा―“बहुतेरे दिन गुप्त मिलाप हो चुका है।”

इसके बाद एक गुल शोर समाई दिया। अपने प्राणनाथ की आवाज़ मैंने सुनी-वे एक आदमी के ऊपर डाँट डपट कर रहे थे, जिसे देखने हम दोनो बहिनें गई; रेखा कि एक डाढ़ीवाला मुगल घर के भीतर घुस आया है और उ० बाबू उसे निकाल बाहर करने के लिये बकझक कर रहे हैं। तब कामिनी ने दर्वाजे पर से ही पुकार कर कहा―

“जीजाजी! क्या आपके शरीर में ज़ोर नहीं है?”

उ० बाबू ने कहा―नहीं क्यों है?”

कामिनी बोली―“तो मुग़ल निगोड़े को गर्दनियां देकर निकाल बाहर क्यों नहीं करते?"