पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/५९

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नवा परिच्छेद

पड़ता। हारानी हंसती हंसती अधमरी हो कर सुभाषिणी के पैर तले पछाड़ खा कर हांफती हांफती कहने लगी,―“दुलहिन! मुझे जवाब दो, मैं ऐसे हंसी के घर में अब नहीं रह सकती―क्योंकि किसी दिन दय बंद होने से मर जाऊगी।”

सुभाषिणी की लड़की ने भी मिसराइन को चटकाया, कहा,―“बूढ़ी बुआ! यह साज किस ने संवारा?

कहा यमने, सोने के बाद!
चला आ, मेरे घर में फांद।
इसी से दिया चिता को साज,
लगा, गोबर-सेंदुर से आज॥”

एक दिन एक बिल्ली ने हांढ़ी में से मछली खाई थी, सो उस के मुंह में हाड़ी का करजा लग गया था। सुभाषिणी के बच्चे ने उसे देखा था, सो बूढ़ो को देख कर कहने लगा―“मा! बूली बुआ भाली चाती है।” (बूढ़ी बुआ ने हांड़ी चाटी है।)

इतना सब कुछ हुआ, पर मेरे इशारे के अनुसार मिसराइन से किसी ने भी असत्य बात का भेद न कहा। और वह बिना संकोच अपनी उस बानर-प्रार्जार विमिश्रित कान्ति सब के सामने विकसित करने लगी। हंसी देख कर वह सब से पूछने लगी कि,―“तुम लोग इतना हंसती क्यों हो?”

इस पर सभी मेरे इशारे के अनुसार कहते कि,―“यह बच्चा क्या कह रहा है, सुनती क्यों नहीं? यह कहता है कि ‘बूढ़ी बुआ नें हंड़िया चाटी है।’ कल रात को कोई तुम्हारे रसोई घर की