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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/६०

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इन्दिरा

हाड़ी चाट गया है, सई सब कोई क नाफूसी कर रहे हैं अरे! हम तो यह कहती हैं कि भला सोना की मा बूढ़ी उमर में क्या ऐसा काम करेंगी?"

तब तो बूढ़ी ने बालों के लच्छे छोड़ने प्रारंभ किये, कहा—"सत्यानासिन, खत्तमरित, अनाजिल" इत्यादि, इत्यादि। मन्त्रोच्चारण कर रहे और उन सभी के, और उन के पति पुत्र आदि के ग्ररण करने के लिये यम को कई बार उसने न्योता दिया किन्तु यमराज ने उस विषय में तुरंत कोई आग्रह प्रकाश न किया। मिसराइन का चेहरा वैसा ही बना रहा। वह उसी दशा से रमण बाबू को रसोई परोसने गई, उसे देख हंसी के वेग को रोकने में उन की ऐसी दशा हो गई कि फिर उन से खाया न गया। मैं ने सुना कि जब वह रामराम दत्त को भात देने गई तो उसे उन्हों ने दुरदुरा कर खदेड़ दिया।

अन्त में सुभाषिणी ने दया कर के बूढ़ी से कह दिया कि—"मेरे कमरे में बड़ा आईना लटक रहा है, तो जाकर उस में अपना मुंह देख आओ।"

बूढ़ी ने जाकर मुख देखा, तब तो वह डाढ़ें मार कर रोने और मुझे गाली देने लगी। मैं ने उसे समझाने के लिये बहुत कुछ चेष्टा की और कहा कि मैं ने बालों को लगाने के लिये कहा था, न​ कि मुंह में; पर बूढ़ी ने मेरी एक न​ सुनी। मेरे यह खाने में हिरे मह वह बार बार​ यमराज को देने लगी, जिसे सुन को लड़की ने,—

"बुलाता, बार बार जो यम।
आयु उस की होती है, कम॥