पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७५
बारहवां परिच्छेद।

मारा था, जिसका जवाब वे दे चुके है। वे अच्छे आदमी नहीं हैं। पर इस समय अपने अनुरोध को उन तक पहुंचाऊं क्यों कर? केवल दो एक पंक्ति मैं सिख दूंगी, बस, वह कागज़ कोई उन्हे दे आवे तो सारा काम बन जाय!

सुभाषिणी―किसी नौकर चाकर के हाथ क्यों नहीं भेज देती?

मैं―यदि जन्म जन्मान्तर मे भी पति न पाऊं, सो भी कबूल, पर किसी पुरुष से ऐसी बात नहीं कह सकती।

सुभाषिणी―हां, यह तो ठीक है, अच्छा किसी दाई के हाथ?

मैं―दाई ऐसी विश्वासी कौन है? यदि कोई उपद्रव खड़ा हो गया तो सब मिट्टी हो जायगा।

सुभाषिणी―हाराजी विश्वासी दाई है।

मैं―विश्वासी जान कर ही हारानी से मैंने कहा था पर वह मेरी बात सुन कर नाराज़ हो गई है। पर तुम्हारा इशारा पाते ही वह जाने को तैयार हो सकती है। किन्तु ऐसा इशारा करने के लिये तुम से क्यों कर कहू? जो मरूंगी, मैं अकेली ही मरूंगी-हाय! अभागे नैंनों में फिर पानी भर आये।

सुभाषिणी―हारानी ने मेरी बात क्या कही है?

मैं―यही कि यदि तुम मना न करो तो वह जा सकती है।

यह सुन सुभाषिणी ने कुछ देर तक इस पर विचार किया, फिर कहा― ‘संध्या पीछे उसे इसी बात के लिये मेरे पास आने को कह देना।’