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पृष्ठ:इन्दिरा.djvu/८५

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तेरहवां परिच्छेद।

सो उसमें कोई दोष नहीं है। किन्तु इन्होंने भी मुझे चीन्ह लिया होगा यह बात कभी होही नहीं सकती। मैंने इन्हें भरी जवानी में देखा था, इसलिये मुझे पहिले ही सन्देह हुआ था। किन्तु इन्होंने मुझे केवल ग्यारह बरस की लड़की ही देखा था। और फिर इन्होंने भी मुझे पहिचाना ही सो किसी प्रकार सम्भव नहीं। इसलिए इस में सन्देह नहीं कि ये मुझे पर स्त्री समझ कर मेरे प्यार की आशा मे अबलाले हुए हैं। इस कारण मैं उनकी बहुत निन्दा करती हूँ। किन्तु ये पति हैं और मैं स्त्री हूं―इसलिये इन्हें बुरा समझना मुझे उचित नही है। यही समझकर अब मैं इस बात को अवलोकन न करुंगी।” मैनें मन ही मन इस बात का संकल्प किया कि यदि मैं कभी वह दिन पाऊंगी तो इन के इस एब को छुड़ाऊंगी।

सुभाषिणी ने मेरी बातें सुन कर कहा―“मेरे ऐसी बंदरी भी कोई न होगी अरी! प्यारी! उन्की स्त्री नहीं है न?”

मैं―तो क्या मेरे पास समझ बैठा है?

सुभाषिणी―अरे, मर! स्त्री और पुरुष की बराबरी क्या? जा देखू तो कमिसेरियट का काम कर के रुपये पैदा कर तो ला?

मैं―अच्छा, पुरुष लोग पेट रखा कर ओर बच्चे जन कर उनको पाले पोसे, अब मैं कमिसेरियट का काम करने जाऊंगी। बात यह है कि जो जिस काम को कर सकता है, वही उसे करना है। क्या पुरुषों के लिये अपनी इंद्रियों का रोकना इतना कठिन है?