नहीं-बोली - "प्राणप्या ! मैं क्या खाक । हरय भए के हो रत्न को जो मैं काशाती हूं ली से ही मेरे र दुःकर रूम किन्तु या झार. १ ही हम लोगों का एक माना है- लो एक देन के सुख : जो मैं अपना यम न खोऊगी। मैं विमोचे लालझे शाप . पास प्राई और मैंने बिना हान्ने बुझे अरमको परिक्षा केन्तुना खूछ रूममा रखें कि एक दम ले को नहीं गिरा हूँ। यो तक मेरी रक्षा का पर खुला का है ! मैं अपना का भाव लमही है कि यह बातमी मेरे ध्य भयो । एस बलो!" उन् : गपने धर्म की बात तुम जान्दो छिन्तु प्यारी ! तुम मुझे फेला दशा में डुबा दे कि डाव मुझे ध धर्म का ही अरमान नहीं है : के कलादू नितुम अन्य भर मेसी दृश्येश्वो आदर कर मेरे पास रहोगी । सल कदध के सियो का समझो।" मैं हल करा --- पुरुषों की नमा विश्वास नहीं। रिका भारत में देखा देवी से क्या इसका पता है ? १ य कह कर मैं फिर सी और दर्शन माई । सबको फिर धीरज मोड़ कर मेरे सारे छोड़ कर रहेनो हासो मेरे शोधों पैर काह कर भेरास्ता रोक जिया और कहा- हाय ! मैं ने लो ऐसा देखा वहीं!" वे मर्मभेदी लंबी सांस लेने लगे। प्राय ! उल्लको वह दशा देख कर मुझे भी दुःा हुआ, मैं ने कहा- " को अपने डेरे पर प्रिये यहा रहने से माप मुझे छोड़ जायगे '
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