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न्याय से सम्बन्ध

इतना किया जा सकता है कि अधिकारी वर्ग से उस क़ानून को बदलवाने का प्रयत्न किया जाय। इस मत के अनुसार बहुत से लब्धप्रतिष्ठ मनुष्य जाति के उपकारक निन्दनीय ठहरते हैं। इस मत के अनुसार भयंकर संस्थाएं, जिनके नाश करने में आधुनिक स्थिति में एक मात्र इस ही हथियार के थोड़ा बहुत कृतकार्य होने की आशा हो सकती है, बहुधा रक्षित हो जायेंगी। इस मत के मानने वाले मस्लहत की बिना पर अपने कथन का समर्थन करते हैं। विशेष दलील वह यह देते हैं कि मनुष्य जाति के सार्वजनिक हित के लिये क़ानून उल्लंघन न करने का भाव बना रहना, आवश्यक है। दूसरे विद्वानों का बिल्कुल इसके विपरीत मत है। उनका कहना है कि यदि क़ानून अनुचित या मस्लहत के विरुद्ध हो तो उसको तोड़ने में कोई दोष नहीं है। बहुत से विद्वान् कहते हैं कि केवल अनुचित क़ानूनों ही को तोड़ना चाहिये। किन्तु कुछ विद्वानों का कहना है कि जो कानून मस्लहत के विरुद्ध है वे अनुचित भी हैं। प्रत्येक कानून मनुष्यों की प्राकृतिक स्वतन्त्रता में कुछ बाधा डालता है। जब तक इस बाधा में मनुष्यों का कुछ लाभ न हो यह बाधा अनुचित है। इन भिन्न २ मतों से यह बात सर्वसम्मत मालूम पड़ती है कि अनुचित क़ानून भी हो सकते हैं। इस कारण क़ानून न्याय या उचित का अन्तिम निर्णायक नहीं हो सकता। क़ानून किसी आदमी को फ़ायदा पहुंचा सकता है, किसी को हानि। यह बात न्याय के विरुद्ध है। किन्तु जब कभी कोई क़ानून अनुचित समझा जाता है जो इसी कारण अनुचित समझा जाता है कि उससे किसी व्यक्ति के अधिकार पर व्याघात पहुंचता है। उस व्यक्ति के इस अधिकार को, जिस पर क़ानून व्याघात पहुंचाता हैं, हम