पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/१४८

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२––टालस्टाय की आत्म-कहानी।

जगत्-प्रसिद्ध रशियन महर्षि टाल्सटायको कौन नहीं जानता। टाल्सटाय का जन्म एक उच्च घराने में हुवा था। उस समय के उच्च-कुलोत्पन्न नव-युवकों के समान टाल्सटाय का यौवन काल भी अनेक घृणित कामों में बीता। दुराचार, मिथ्या-भाषण, लूटमार, मद्यपान, निर्दयता आदि सब ही दुष्कर्म उसने किये। किन्तु अन्त को उसके जीवन ने ऐसा पल्टा खाया कि महात्मा और ऋषि के नाम से पुकारा जाने लगा। यदि आप जानना चाहते हैं कि टाल्सटाय के जीवन में ऐसा बड़ा परिवर्तन किस प्रकार होगया तो आप यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। यह पुस्तक टाल्सटाय की "My Confession" नामक पुस्तक का सरल तथा सरस हिन्दी में अनुवाद है। योरोपीय भाषाओं में इस पुस्तक के सैंकड़ों संस्करण निकल चुके हैं। पुस्तक के आदि में भूमिका के अतिरिक्त टाल्सटाय का चित्र और जीवनचरित्र भी है। पृष्ठ संख्या १२० के लगभग। मूल्य केवल ॥⇗)

प्रताप––यह महर्षि टाल्सटाय की आत्म-कहानी है। जिज्ञासुओं को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिये। महात्माओं की विचार-धारा में निमञ्जित होने से चित्त को शान्ति मिलती है। विशेषतः हिन्दी के पाठकों को असहयोग के इस युग में टाल्सटाय के विचार अवश्य जानना चाहियें। पुस्तक की भाषा अच्छी है।

ज्योति––महात्माओं के जीवन-चरित्र का पाठ सदैव लाभदायक होता है और फिर टाल्सटाय जैसे महात्मा का जीवन जिसने अन्धकार से प्रकाश में, कुमार्ग से सत्मार्ग में प्रवेश किया हो तो अवश्य ही शिक्षा-प्रद है। आरम्भ में १५ पृष्ठ में कारुणिक जी ने टाल्सटाय का जीवन-चरित्र देकर पुस्तक की उपयोगिता को और बढ़ा दिया है।