पृष्ठ:उपयोगितावाद.djvu/१५

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के लिये यह प्रमाणित करना होगा कि सुख आचार-युक्तता का एक निर्णायक ही नहीं वरन् एक मात्र निर्णायक है या दूसरे शब्दों में यह समझ लीजिये कि यह बात प्रमाणित करना चाहिये कि मनुष्य केवल सुख ही को नहीं चाहते हैं वरन् सुख के अतिरिक्त वे किसी और वस्तु की कामना ही नहीं करते हैं।

विपक्षियों का कहना है कि मनुष्य सुख के अतिरिक्त और चीजें भी चाहते हैं जैसे नेकी या पुण्य (Virtue), शोहरत, शक्ति तथा धन। किन्तु विचार करने से मालूम होगा कि उपरोक्त सब चीजें सुख का साधन होने ही के कारण इष्ट हैं। जो मनुष्य पुण्य या नेकी की कामना करते हैं, वे इस प्रकार की कामना इन दो कारणों में से किसी एक कारण की वजह से करते हैं। या तो उन्हें अपने नेक होने का ध्यान आने से सुख मिलता है या अपने नेक न होने का ख्याल आने से दुःख होता है। शोहरत या शक्ति मिलने के साथ ही साथ हम को तत्क्षण कुछ आनन्द सा प्रतीत होने लगता है किन्तु फिर भी मनुष्य स्वाभवतया शक्ति तथा ख्याति इस कारण चाहते हैं कि शक्तिशाली या प्रसिद्ध होने पर उन्हें अपनी इच्छाओं की पूर्ति में बड़ी सहायता मिलती है। धन का यही मूल्य है कि उस के द्वारा और चीज़ें ख़रीदी जा सकती हैं। इस कारण आरम्भ में धन की इच्छा उन वस्तुओं के कारण होती है जो उस धन द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। और उन वस्तुओं की इच्छा इस कारण होती है कि उन वस्तुओं के मिलने से सुख मिलता है तथा न मिलने से दुःख। इन सब बातों से प्रमाणित होता है कि सुख के अतिरिक्त और कोई चीज़ इष्ट नहीं है। अन्य